मान्यता अनुसार पुराने जमाने में इस इलाके पर राजा हरबेंग सिंह राज्य करता था। इसे कुछ लोग हरबोंग सिंह भी कहते हैं। हरबेंग सनकी और अत्याचारी शासक था। इसने अपने शासन में अंधेर मचा रखा था। इसके राज्य में सभी चीजें टका सेर बिकती थी। इसीलिए कहावत चल गई थी- अंधेरी नगरी अनबूझ राजा, टकासेर भाजी, टका सेर खाझा।
कहते हैं कि एक बार त्रिवेणी संगम पर परम सिद्ध अवधूत मत्स्येन्द्र नाथ और गुरु गोरखनाथ स्नान करने आए थे। इस सनकी और घमण्डी राजा ने इन दोनों संतों का अपमान कर दिया था। दोनों सिद्ध योगी राज के अपमान से आहत होकर क्रोधित हो उठे। गुरु गोरखनाथ ने क्रोध से जलते हुए हाथ उठा कर कहा कि अभिमानी राजा, सिद्धों के श्राप से तेरी राजधानी उलट जाएगी और तू नष्ट हो जाएगा।
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इस नगरी के संबंध में एक कहानी और कही जाती है। दरअसल, सन् 1359 के आसपास मध्य एशिया से चलकर एक पहुंचे हुए फकीर ने झूंसी में डेरा डाला। गंगा किनारे की यह बस्ती उन्हें बहुत पसन्द आई। वे पांचों वक्त नमाज पढ़ते थे। उन्हें दुनिया की नाशवान चीजों से कोई मोह नहीं था, लेकिन सनकी हरबेंग सिंह को इस फकीर का राजधानी में रहना फूटी आंख नहीं भाया। उसने फकीर को राजदरबार में बुलाकर उनका अपमान किया।
वर्तमान में झूंसी एक आबाद क्षेत्र है। इसे पूर्व में अंधेरनगरी, पुरी और प्रतिष्ठानपुर नाम से जाना जाता था। यह स्थान निओलिथिक साइट में से एक होने के लिए भी विख्यात है, जो कि दक्षिण एशिया में खेती के शुरुआती प्रमाणों में से एक है। कुमाऊं में चन्द राजवंश के संस्थापक, सोम चन्द, झूसी के मूल निवासी थे।