झुंझुनूं। राजस्थान में मुसलमानों के वोट लेने के लिए सभी राजनीतिक दल जोर लगा रहे है। लेकिन प्रदेश में उनकी जनसंख्या के अनुपात में कोई भी पार्टी राजनीति में हिस्सेदारी नहीं देना चाहती है।
राजस्थान में करीबन 78 लाख यानी 11 फीसदी मुसलमान मतदाता है। कई विधानसभा सीट तो ऐसी है जहां उम्मीदवारो की हार जीत का फैसला ही मुसलमान मतदाता करते हैं। इसके उपरान्त भी राजनीतिक दलो की सोच में आज भी मुसलमान महज एक वोट बैक से ज्यादा कुछ नहीं है।
गत विधानसभा चुनाव में राजस्थान में कुल बारह मुसलमान विधायक चुने गए थे जिसमें दस कांग्रेस एवं दो भाजपा के चुने गए थे। पिछली बार कांग्रेस ने राजस्थान में 17 मुसलमानों को टिकट दिया था वहीं भाजपा ने चार लोगों को ही अपना प्रत्याशी बनाया था।
कांग्रेस ने अपने दस विधायको में से तीन दुरूमियां, अमीन खान व नसीम अख्तर इंसाफ को मंत्री बनाया गया वहीं कामां से विधायक जाहिदा बानो को संसदीय सचिव बनाकर लाल बत्ती दी गई थी। बाकी छह विजेता विधायक साले मोहम्मद, जाकिर हुसैन गेसावत, अलाउदीन आजाद, भंवरू खान, श्रीमती जकिया व मकबूल मंडेलिया थे। भाजपा से नागौर से कांग्रेस छोड़कर आए हबीबुर्र रहमान व धौलपुर से अब्दुल सगीर खान जीते थे।
भाजपा ने इस बार भी चार मुसलमानो को धौलपुर से अब्दुल सगीर खान, नागौर से हबीबुर्र रहमान, डीडवाना से युनूस खान व मंडावा से सलीम तंवर को अपना प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस ने इस बार मात्र 16 मुसलमानों को ही टिकट दिया है जबकि पिछली बार 17 टिकट दिए थे।
कांग्रेस ने अपने मौजूदा दस विधायकों में से एक सवाईमाधोपुर से अल्लाउदीन आजाद का टिकट काट कर उसके स्थान पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. अबरार अहमद के पुत्र दानिस अबरार को टिकट दिया है।
बाकी नौ मौजूदा विधायकों चूरू से मकबूल मंडेलिया, फतेहपुर से भंवरू खान, पुष्कर से नसीफ अख्तर इंसाफ, टोक से श्रीमती जकिया, तिजारा से दुरू मिया, कामां से जाहिदा बानो, मकराना से जाकिर हुसैन, पोकरण से साल मोहमद, शिव से अमीन खान को पुन: मैदान में उतारा है।
इसके अलावा आर्दश नगर से मोहम्मद माहिर आजाद, किशनपोल से अमीन कागजी, नागौर से शौकत अली, सूरसागर से जेफू खान, रामगढ़ से जुबेर खान, लाडपुरा से नईमुद्दीन गुड्ड को प्रत्याशी बनाया है।
इनमें मोहम्मद माहिर आजाद, जुबेर खान, नईमुद्दीन गुड्डु पिछली बार भी कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ कर हार चुके थे। राजस्थान की राजनीति में मुसलमानो को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलने का मूल कारण स्वयं मुसलमान भी है जो खुद राजनीतिक दलों के वोट बैक के रूप में इस्तेमाल होते आए है।
राजस्थान में किसी भी पार्टी में बड़े कद का कोई मुस्लिम नेता नहीं है। राज्य सरकार में मुसलमान प्रतिनिधि के तौर पर कुछ मंत्री बना कर खानापूर्ति कर दी जाती है। राजस्थान में बरकतुला खान जरूर एक बार मुख्यमंत्री बने मगर वो भी अपने बड़े कद के कारण नहीं बल्कि एक कांग्रेस नेता के तौर पर ही।
राजस्थान से कैप्टन अयूब खान एक मात्र मुस्लिम नेता थे जो झुंझुनूं से दो बार लोकसभा चुनाव जीत कर सांसद बनने में सफल हो पाए थे। उनसे पहले एवं बाद आज तक कोई दूसरा मुस्लिम लोकसभा का सदस्य नहीं बन पाया है।
भाजपा सरकार में भी एक मुसलमान को मंत्री बनाकर कोटा पूरा करने की परम्परा रही है। राजस्थान का मुस्लिम समाज काफी पिछड़ा व आर्थिक रूप में कमजोर है। उनमें शिक्षा का स्तर भी काफी कम है। राजस्थान की किसी भी पार्टी की सरकार ने मुसलमानों का पिछड़ापन दूर करने का कोई खास प्रयास नहीं किया है।
गत दिनो जयपुर के एक कार्यक्रम में आए जमीयत उलेमा ए हिन्द के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने कहा था कि कांग्रेस नरेन्द्र मोदी का डर दिखाकर मुसलमानों के वोट लेना चाहती है लेकिन मुसलमानों से मोदी से डरने की जरूरत नहीं है। उनके बयान के बाद कांग्रेस में खलबली मच गई थी। इस बाबत कांग्रेस को दिल्ली तक से सफाई देनी पड़ी थी।
जमीयत के राजस्थान प्रदेश महासचिव अब्दुल वाहिद खत्री सरकार पर आरोप लगाते है कि गत 4 वर्षों में राज्य भर में 4 र्दजन से अधिक साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं हो चुकी है। गोपालगढ़ में राज्य पुलिस द्वारा 292 राउंड गोलियां चलाकर 10 मुसलमानो का कत्ल किया गया। टोक में जुम्मे की नमाज के बीच पुलिस ने मस्जिद में घुसकर दरवाजे बंद कर एक नमाजी की हत्या और 70 से अधिक लोगो को बुरी तरह जख्मी किया। (वार्ता)