Ramadan 2024: क़ुरआने-पाक के तेईसवें पारे (अध्याय-23) की सूरह 'सफ्फात' की पचहत्तरवीं आयत में अल्लाह का इरशाद (आदेश) है- 'और हमको नूह ने पुकारा सो हम खूब फरियाद सुनने वाले हैं।' इस आयत की रोशनी में अट्ठाईसवां रोजा बेहतर तौर पर समझा जा सकता है। गौरतलब बात है कि रमजान का यह आखिरी अशरा दोजख से निजात (नर्क से मुक्ति) का अशरा (कालखंड) है।
यहां समझने-समझाने के लिहाज से बाद वाला कौल पहले देखना होगा, क्योंकि इसी कौल पर इबादत (जो बंदा करता है) और 'रहमत' (अल्लाह की) के ताल्लुक का दारोमदार (मूल आधार) है। यानी जब अल्लाह वादा कर रहा है रहमत का (कृपा का यानी फरियाद सुनने का) तो उसे पुकारना भी तो होगा यानी इबादत भी तो करना होगी।
वैसे भी अट्ठाईसवां रोजा जिस दिन होता है उस तारीख को शाम के बाद उन्तीसवीं ताक रात होती है, जिसमें भी शबे-कद्र को तलाशा जाता है। इबादत से ही तो तलाश मुकम्मिल होकर मंजिल मिलेगी। यानी अल्लाह की इबादत जन्नत की कुंजी है। हजरत मोहम्मद (सल्ल.) का इरशाद है- 'खड़े होकर इबादत कर।' प्रस्तुति : अजहर हाशमी