अन्नपूर्णा भंडार : 'ग्रा‍मीण मॉल', क्या है हकीकत

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015 (12:29 IST)
अब मल्टी स्टोर्स की नजर ग्रामीण क्षेत्र के उपभोक्ताओं पर भी हैं। वे सरकार के सहारे अपनी रणनीतियों को कामयाब बना रही हैं। ऐसी एक योजना है 'अन्नपूर्णा भंडार', जिसकी शुरुआत राजस्थान सरकार ने की है। 
 
इस योजना के बारे में कहा जा रहा है कि यह एक तरह का 'ग्रामीण मॉल' है, जहां लोगों को उचित कीमत पर अच्छे ब्रांड के सामान मिलेंगे। एक तरफ सरकार इसे लोगों के लिए एक अच्छी योजना बता रही है वहीं, दूसरी तरफ इस योजना का विरोध भी हो रहा है। विरोधियों का कहना है कि सरकार राशन की दुकानों को निजी हाथों में सौंप रही है। सामाजिक कार्यकर्ता सरकार के निजी कंपनी को यह ठेका देने का विरोध कर रहे हैं। आइए जानते हैं क्या है अन्नपूर्णा भंडार योजना और क्यों हो रहा है इसका विरोध- 
क्या है अन्नपूर्णा भंडार योजना : राजस्थान सरकार के उपक्रम राजस्थान राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम और फ्यूचर कन्ज्यूमर इंटरप्राइजेज लिमिटेड के बीच इस योजना के लिए समझौता किया है। फ्यूचर ग्रुप देश में बिग बाजार के रिटेल चलाता है और खबरों के अनुसार ‍फ्यूचर ग्रुप के इस समय देश में करीब 500 सुपर स्टोर हैं। 
  
 
इस योजना के अतंर्गत फ्यूचर ग्रुप राशन दुकानों के माध्यम से फ्यूचर ग्रुप के 250 प्रोडक्ट को बेचेगी। इनमें दाल, मसाले, तेल और बिस्कुट  बेसन, मैदा, रवा, अचार, सॉस और टेलकम पाउडर, शैम्पू, क्रीम, टूथब्रश,  जैसी चीजें खाद्य सामग्रियां और रोजमर्रा उपयोग की वस्तुएं शामिल होंगी।
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सरकार का पक्ष : राजस्थान में 5000 दुकानों पर अन्नपूर्णा भंडार योजना के तहत सामान मिलेगा। राजस्थान में एक साल के प्रयोग के बाद इस योजना की शुरुआत की गई है। 
इस योजना के बारे में सरकार का कहना है कि छोटे कस्बों और ग्रा‍मीण इलाकों में सस्ता व अच्‍छा सामान मिलेगा। इस योजना से दुकानदार भी पूरे महीने अपनी दुकान चला पाएंगे। दुकानदार इस योजना का माध्यम से करीब 250 प्रोडक्ट बेचेंगे जिन पर उन्हें कमीशन मिलेगा। 
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5000 दु‍कानों पर प्रयोग : खबरों के अनुसार योजना के पहले चरण में प्रदेश की 5,000 उचित मूल्य की दुकानों में इसे लागू किया जाएगा। इस समय एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में जयपुर में पांच और उदयपुर में एक अन्नपूर्णा भंडार चलाए जा रहे हैं। 
 
क्यों हो रहा है योजना का विरोध : इस योजना का विरोध करने वाले सामाजिक संस्थाओं का कहना है कि इस योजना के माध्यम से फ्यूचर ग्रुप अपना नेटवर्क बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। सरकार को इस योजना से कोई फायदा नहीं मिलेगा। सामाजिक संगठनों का कहना है कि इस योजना से सार्वजनिक वितरण प्रणाली का निजीकरण किया जा रहा है। जो राज्य का एकाधिकार है उसे निजी हाथों में कैसे दिया जा सकता है।
 
कैसे मिल सकता है सस्ता  : फ्यूचर कंज्यूमर  इंटरप्राइजेज समूह के सीईओ किशोर बियाणी का कहना है कि इस योजना के ‍तहत राशन दुकानों पर ग्रुप एमआरपी पर इन वस्तुओं को बेचेगा। अब सवाल यह उठता है कि एमआरपी पर सस्ता कैसे हो सकता है। अगर एमआरपी पर ही इन चीजों को लोगों को खरीदना हो तो वह अन्य जगहों से इन्हें खरीद सकता है। 

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