ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत, इन लोगों पर कसेगा शिकंजा

गुरुवार, 17 अगस्त 2017 (10:29 IST)
लखनऊ/ गोरखपुर। गोरखपुर स्थित बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में 10 और 11 अगस्‍त को कथित रूप से ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित होने के कारण हुई 30 बच्‍चों की मौत की शुरुआती जांच में मेडिकल कॉलेज के तत्‍कालीन प्रधानाचार्य समेत कई वरिष्‍ठ अधिकारियों एवं कर्मचारियों के अलावा ऑक्‍सीजन आपूर्तिकर्ता कंपनी को एक जांच समिति ने प्रथम दृष्टया जिम्मेदार ठहराया है।
 
जिलाधिकारी राजीव रौतेला द्वारा गठित 5 सदस्यीय जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ऑक्‍सीजन आपूर्तिकर्ता कंपनी मेसर्स पुष्‍पा सेल्‍स प्राइवेट लिमिटेड ने ऑक्‍सीजन की आपूर्ति बाधित कर दी जिसके लिए वह जिम्‍मेदार है। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था,क्‍योंकि इसका प्रत्यक्ष संबंध मरीजों के जीवन से था।
 
जांच समिति ने पाया है कि मेडिकल कॉलेज के एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम वार्ड के नोडल अधिकारी डॉक्‍टर कफील खान ने एनेस्‍थीसिया विभाग के प्रमुख डॉक्‍टर सतीश कुमार को वार्ड का एयरकंडीशनर खराब होने की लिखित सूचना दी थी, लेकिन उसे समय पर ठीक नहीं किया गया। 
 
डॉक्‍टर सतीश गत 11 अगस्‍त को बिना किसी लिखित अनुमति के मेडिकल कॉलेज से गैरहाजिर थे। डॉक्‍टर सतीश वार्ड में ऑक्‍सीजन की निर्बाध आपूर्ति के लिए जिम्‍मेदार थे, लिहाजा वे अपने कर्तव्‍य के प्रति लापरवाही के लिए प्रथम दृष्‍ट्या दोषी हैं। मालूम हो कि 10-11 अगस्‍त को मेडिकल कॉलेज में बच्‍चों की मौत होने के बाद डॉक्‍टर कफील को हटा दिया गया था।
 
जांच समिति ने एक और लापरवाही का जिक्र करते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा है कि डॉक्‍टर सतीश और मेडिकल कॉलेज के चीफ फार्मासिस्‍ट गजानन जायसवाल पर ऑक्‍सीजन सिलेंडरों की स्‍टॉक बुक और लॉग बुक को अपडेट करने की जिम्‍मेदारी थी लेकिन उन्‍होंने ऐसा नहीं किया, साथ ही लॉगबुक में कई जगह ओवरराइटिंग भी की गई है। लॉगबुक के प्रभारी डॉक्‍टर सतीश ने उस पर दस्‍तखत भी नहीं किए, इससे जाहिर होता है कि इस मुद्दे को न तो डॉक्‍टर सतीश ने और न ही मेडिकल कॉलेज के तत्‍कालीन प्रधानाचार्य डॉक्‍टर राजीव मिश्रा ने गंभीरता से लिया।
 
जांच समिति ने पाया है कि डॉक्‍टर राजीव मिश्र पिछली 10 अगस्‍त को, जब बच्‍चों की मौत का सिलसिला शुरू हुआ, गोरखपुर से बाहर थे। इसके अलावा डॉक्‍टर सतीश भी 11 अगस्‍त को बिना अनुमति लिए मुंबई रवाना हो गए। अगर इन दोनों अधिकारियों ने बाहर जाने से पहले ही समस्‍याओं को सुलझा लिया होता तो बड़ी संख्‍या में बच्‍चों की मौत नहीं होती। दोनों ही अधिकारियों को आपूर्तिकर्ता कंपनी द्वारा ऑक्‍सीजन की आपूर्ति बाधित किए जाने की जानकारी अवश्‍य रही होगी।
 
जांच समिति ने यह भी पाया है कि मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉक्‍टर राजीव मिश्रा ने बाल रोग विभाग के अत्‍यंत संवेदनशील होने के बावजूद उसके रखरखाव और वहां की जरूरत की चीजों के एवज में भुगतान पर ध्‍यान नहीं दिया।
 
समिति ने पाया है कि ऑक्‍सीजन आपूर्तिकर्ता कंपनी ने अपने बकाया भुगतान के लिए बार-बार निवेदन किया, लेकिन 5 अगस्‍त को बजट उपलब्‍ध होने के बावजूद मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य के समक्ष पत्रावली (बिल) प्रस्‍तुत नहीं की गई। इसके लिए लेखा विभाग के 2 कर्मियों समेत 3 लोग प्रथम दृष्‍ट्या दोषी पाए गए हैं।
 
5 सदस्यीय जांच समिति ने यह भी पाया है कि स्‍टॉक बुक में ओवरराइटिंग और ऑक्‍सीजन आपूर्तिकर्ता कंपनी के बिलों का श्रृंखलाबद्ध या तिथिवार भुगतान नहीं होना, प्रथम दृष्‍ट्या वित्‍तीय अनियमितताओं की तरफ इशारा करता है। ऐसे में चिकित्‍सा शिक्षा विभाग द्वारा इसका ऑडिट और उच्‍चस्‍तरीय जांच कराना उचित होगा।
 
गौरतलब है कि 10-11 अगस्‍त को बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में 30 बच्‍चों की मौत का मामला सामने आने पर जिलाधिकारी राजीव रौतेला ने मामले की जांच के लिए एक समिति गठित की थी, हालांकि सरकार भी इस मामले की उच्‍चस्‍तरीय जांच करा रही है। (भाषा) 

वेबदुनिया पर पढ़ें