बोर्ड के सूत्रों ने बताया कि पर्यावरण के अनुकूल यह बुर्का न केवल मुस्लिम महिलाओं को भा रहा है, बल्कि सऊदी अरब जैसे उन खाड़ी देशों में कार्यरत गैरमुस्लिम महिलाओं में भी इसकी मांग है, जहां बाहर जाते समय यह विशेष पोशाक पहनना अनिवार्य है।
खादी धोती, कमीज और साड़ियों जैसे जुदा अंदाज वाले परिधानों की श्रृंखला के लिए जाने जाने वाले इस बोर्ड ने हाल में संपन्न हुए ओणम त्योहार के सीजन के दौरान विशेष उत्पाद के तौर पर 'खादी बुर्का' बाजार में पेश किया है। विदेशों में उपलब्ध चमकदार बुर्के के विपरीत केरल का खादी बुर्का अपने डिजाइन, कई रंगों में उपलब्धता और सभी मौसमों के अनुकूल होने के कारण काफी पसंद किया जा रहा है।
कन्नूर जिले में पिछले माह इसकी पहली बार बिक्री के दौरान 10 दिन में बुर्के की 6लाख रुपए की बिक्री हुई। बोर्ड को अब इसके लिए राज्य और विदेशों से कई फोन आ रहे हैं और ढेरों ऑर्डर मिल रहे हैं। बोर्ड के उपाध्यक्ष एमवी बालकृष्णन मास्टर ने कहा कि केरल में इसका उत्पादन और बिक्री को बढ़ाने और अपने कामगारों को बुर्का सिलाई का प्रशिक्षण देने की उनकी योजना है।
उन्होंने कहा कि मैं अपनी एक हालिया यात्रा में कुछ महिलाओं से मिला, जो बुर्का पहने हुए थीं। मुझे तभी अचानक विचार आया कि हम अपनी खादी से बुर्का क्यों नहीं बना सकते? मैंने अपनी टीम के सदस्यों से इस बात को लेकर विचार-विमर्श किया और इसलिए हमने ओणम के दौरान प्रयोगात्मक आधार पर खादी बुर्का बाजार में पेश किया। लेकिन हमें इतनी स्वीकार्यता और सफलता की उम्मीद नहीं की थी। खादी का यह बुर्का काले, भूरे, हरे और बैंगनी समेत 15 विभिन्न रंगों में उपलब्ध है और डिजाइन के अनुसार इसकी कीमत 1,100 से 1,600 रुपए के बीच है।
कन्नूर में बोर्ड के शोरूम प्रबंधक फारुक केवी ने कहा कि आमतौर पर महिलाएं अपने सामान्य कपड़ों के ऊपर बुर्का पहनती हैं। हमारा बुर्का खादी का बना है, तो यह गर्मी से बचाएगा और इसे पहनना अन्य बुर्कों की तुलना में अधिक आरामदायक है। (भाषा)