डाकिया हैं ओशो संन्यासी-अमृत साधना

ओशो की डाकिया मां अमृत साधना। वे यही कहती हैं। ओशो संन्यासी कोई बहुत ऊंची हस्तियां नहीं हैं, वे पोस्टमैन से ज्यादा कुछ नहीं हैं। गुरुवार को मां अमृत साधना का इंदौर आगमन हुआ। नईदुनिया के दफ्तर में वेबदुनिया प्रतिनिधि अनिरुद्ध जोशी 'शतायु' द्वारा उनसे की गई छोटी-सी मुलाकात के अंश। 
 
इस सहज और सामान्य मुलाकात में सवाल तो ढेर सारे थे, लेकिन सवालों से हटकर हमने यही कुरेदने का प्रयास किया कि आखिर वह कौन-सी वजह है, जिसके कारण ओशो आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं। बच्चों सी सहज मां अमृत साधना के जवाब बिल्कुल भी तार्किक नहीं थे, लेकिन वे सीधे और सपाट जरूर थे, बगैर किसी लाग लपेट के।
 
*ओशो कम्यून को रिजॉर्ट क्यों बनाया गया, कम्यून के बारे में कुछ कहें?
-1989 में ओशो ने ही इसे रिजॉर्ट बनाने को कहा था। ओशो जानते थे कि समय बदलेगा तो समय के साथ सब कुछ बदलना है। रजनीश आश्रम कोई चर्च नहीं है। चर्च जिसका एक पोप होता है जो सभी को संचालित करता है। यहां ओशो के इनर सर्कल द्वारा उनके संदेश, कार्य, चित्र, पेंटिंग आदि को संरक्षित किया जाता है। यहां जो भी है, वह उनकी देशनाओं को डिजिटल फॉर्म में लाने के लिए कार्यरत है। ओशो का मूल संदेश है मेडिटेशन। यहां की केन्द्रीय गतिविधि है 'मेडिटेशन'।
 
*ओशो टाइम्स का नाम 'येस ओशो' रखने की क्या वजह रही?
-बदलाव जीवन का नियम है। यह उन्होंने बदला, जो इसे संचालित करते हैं।
 
*माना जाता है कि ओशो पर बुद्ध का प्रभाव ज्यादा रहा?
-यह सही नहीं है। ओशो पर किसी का भी प्रभाव नहीं रहा। ओशो ने अपने सभी प्रवचनों में यदि 'बुद्ध' शब्द का इस्तेमाल किया है तो 'वर्ब' की तरह यानी क्रिया की तरह, संज्ञा की तरह नहीं। बुद्ध का अर्थ है 'जागा हुआ व्यक्ति'। ओशो पर किसी भी वाद का कोई प्रभाव नहीं था। वे तो सभी तरह के वाद के ‍विरुद्ध रहे हैं।
 
*क्या आपको नहीं लगता कि 'ओशो धारा' ओशो की विचारधारा के खिलाफ है?
-मुझे ओशो धारा के बारे में कुछ नहीं मालूम। इससे सहमत और असहमत होने का सवाल ही नहीं उठता। बुद्ध के समय भी कई ऐसे लोग थे, जिन्होंने बुद्ध से अलग होकर अपनी एक स्वतंत्र इकाई बनाई थी।
 
*माना जाता है कि ओशो परिवार, समाज, धर्म और राष्ट्र की अवधारणा के खिलाफ थे?
-आदर्श परिवार से आदर्श समाज, राष्ट्र आदि का निर्माण होता है, लेकिन हमारे परिवार से अपराधी और आतंकवादी निकल रहे हैं। इससे सिद्ध होता है कि परिवार की परिकल्पना में कहीं बुनियादी गड़बड़ है। ओशो विवाह और परिवार की धारणा के खिलाफ रहे हैं। ओशो ने व्यक्ति की निजता पर बल दिया है। आज के सारे परिवार दुखी है...क्यों? हर कोई परिवार में रहकर भी अकेला महसूस करता है।
 
दरअसल 'अकेलापन' ही स्वयं को स्वयं के नजदीक ले जाता है। अपने अकेलेपन में ही व्यक्ति स्वयं में डूबकर खुद की खोज की यात्रा पर निकल सकता है। आत्मा खिलना चाहती है, लेकिन विवाह और परिवार ने उसे कुचल दिया है।
 
पश्चिम के सारे परिवार बिखर गए हैं, वह अकेले रहकर सभी सुखी है। अकेलेपन के अपने नुकसान भी है, लेकिन अकेलेपन की ऊर्जा को संभालने के लिए ही ओशो ने 'ध्यान' का सहारा दिया है। आज पश्चिम को ध्यान की ज्यादा जरूरत है, वे ज्यादा मेच्योर हैं। वे ओशो की बातों को अच्छे से समझ सकते हैं। भारत को अभी देर लगेगी।
 
अब या तो इस धरती पर विवाह रहेगा या मनुष्य। विवाह रहेगा तो मनुष्य नहीं बचेगा और मनुष्य बचा रहा तो विवाह नहीं बचेगा। विवाह सबसे घातक है।
 
ओशो मानते हैं कि संस्कृति धर्म आदि सभी तरह की धारणाएं सड़ गई हैं। पुरानी संस्कृति, धर्म और अध्यात्म सभी धाराशायी होने चाहिए। अब तक व्यक्ति होरिजेंटल जिया है। संस्कृति, धर्म, परिवार आदि सभी की बातें मानकर जिया है। अब वक्त है वर्टिकल जीने का। आत्मा को खिलना है तो अपने जवाब खुद ढूंढना होंगे।
 
*ओशो नास्तिक थे या आस्तिक?
-ओशो अराजकतावादी (Anarchist) थे। वे न नास्तिक थे न आस्तिक। आप उन्हें अज्ञेयवादी (Agnostic) मान सकते हैं। ईश्वर है या नहीं है इससे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं आप। झेन धर्म मैं ईश्वर, गुरु और शिष्य जैसी ओई अवधारणा नहीं है। यह दुनिया का पहला ऐसा धर्म है जो धार्मिकता (religiousness) ‍सिखाता है। ओशो की एक किताब का नाम है 'मैं धर्म नहीं धार्मिकता सिखाता हूं'।

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