अदालत ने हालांकि 28 दिसंबर के अपने आदेश में कहा कि यह मामला गंभीर प्रकृति का है, क्योंकि इसमें पॉक्सो कानून के तहत हुआ अपराध भी शामिल है। अदालत ने पुलिस का 7 जनवरी तक इस मामले की पुलिस डायरी पेश करने का भी निर्देश दिया है। आरोपों के अनुसार बाल कल्याण समिति, लखीमपुर ने आरोपी को 2 बच्चियों को फॉस्टर घर मुहैया कराने को कहा था और उन्होंने 2 बच्चियों को अपने और अपनी पत्नी की देखरेख में रखने पर हामी भरी थी। दोनों बच्चियां सितंबर 2020 से आरोपी के परिवार के साथ रह रही थीं।
आरोपी के वरिष्ठ अधिवक्ता एएम बोरा के अनुसार उनके मुव्वकिल और सीडब्ल्यूसी लखीमपुर के अध्यक्ष के बीच कुछ विवाद हो गया और आरोपी से दोनों बच्चियों को 28 अक्टूबर, 2021 से पहले आयोग के समक्ष पेश करने को कहा गया।
बच्चियों को 28 अक्टूबर को सीडब्ल्यूसी लाया गया और उस समय से दोनों आयोग की देखरेख में हैं। बच्चियां अपने फॉस्टर माता-पिता के घर नहीं जाना चाहती हैं, इस आधार पर आरोपी का फॉस्टर लाइसेंस 17 दिसंबर को रद्द कर दिया गया। बोरा का तर्क है कि यह आरोप उनके मुवक्किल और सीडब्लूसी के अध्यक्ष के बीच टकराव का नतीजा है और उन्होंने इसी आधार पर याचिकाकर्ता की सामाजिक हैसियत के मद्देनजर अंतरिम संरक्षण देने का अनुरोध किया। हालांकि इस मामले में अतिरिक्त लोक अभियोजक एस. जहां ने याचिकाकर्ता को अंतिरम जमानत का विरोध किया और कहा कि इस तरह के आरोपों में सामाजिक हैसियत पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।