पनुन कश्मीर के विस्थापित हिन्दुओं का संगठन है। इसकी स्थापना सन् 1990 के दिसम्बर माह में की गई थी। इस संगठन की मांग है कि कश्मीर के हिन्दुओं के लिए कश्मीर घाटी में अलग राज्य का निर्माण किया जाए।
पनुन कश्मीर का अर्थ है हमारे खुद का कश्मीर। वह कश्मीर जिसे हमने खो दिया है उसे फिर से हासिल करने के लिए संघर्ष करना। पन्नुन कश्मीर, कश्मीर का वह हिस्सा है, जहां घनीभूत रूप से कश्मीरी पंडित रहते थे।
पनुन कश्मीरी यूथ संगठन कश्मीर के उन कश्मीरी पंडितों का संगठन है, जो सात लाख से अधिक कश्मीरी पंडितों के हक के लिए लड़ाई लड़ रहा है और जो चाहता है कि यह क्षेत्र हमें देकर इसका अधिकार केंद्र के हाथों में रहे। यह केंद्र शासित राज्य हो।
वैसे तो सदियों से कश्मीर घाटी में रह रहे कश्मीरी मूल के कश्मीरी हिन्दू पंडितों को नरसंहार के दम पर पलायन के लिए मजबूर किया जाता रहा है लेकिन 1989-90 में इस्लामिक आतंकवादियों ने आतंकवाद और हिंसा के जरिए घाटी से निकाल दिया था।
कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में बेरहमी से सताया गया, उनकी हत्या की गई, उनकी स्त्रियों के साथ बलात्कार किया गया और उनकी लड़कियों से जबरन निकाह कर पुरुषों को मार दिया गया।
चुप हैं सरकारें : यह अत्याचर कई वर्षों तक चलता रहा, लेकिन भारत की केंद्र और राज्य सरकारों ने कभी भी उन्हें सुरक्षा प्रदान नहीं की और आज भी जबकि वह जम्मू और दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं तो सरकारें चुप हैं। भारतीय राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवी और जनता को इस तथ्य का जरा भी एहसास नहीं कि कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए व्यापक रूप से विघटन की योजना चल रही है।
जारी है पाकिस्तान का छद्म युद्ध : पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा छेड़े गए छद्म युद्ध के द्वारा आज कश्मीरी पंडित अपनी पवित्र भूमि से बेदखल हो गए हैं और अब अपने ही देश में शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं। पिछले 25 वर्षों से जारी आतंकवाद ने घाटी के मूल निवासी कहे जाने वाले लाखों कश्मीरी पंडितों को निर्वासित जीवन व्यतीत करने पर मजबूर कर दिया है।
‘जेहाद’ और ‘निजामे-मुस्तफा’ के नाम पर बेघर किए गए लाखों कश्मीरी पंडितों के वापस लौटने के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। ऐसे में जातिसंहार और निष्कासन के शिकार कश्मीरी पंडित घाटी में अपने लिए ‘होम लैंड’ की मांग कर रहे हैं।
आज कश्मीर के पंडित एक ऐसा समुदाय हो गए हैं, जो बिना किसी गलती के ही अपने घर से बेघर हो गए हैं। उन्हें शायद अपनी शांतिप्रियता के कारण ही यह दिन देखने पड़ रहे हैं कि सब कुछ होते हुए भी वे और उनके बच्चे सड़क पर हैं। भारत की आजादी ने उनसे उनका सब कुछ छीन लिया। 1989 के पहले भारतीय कश्मीर के पंडितों के पास अपनी जमीनें, घर, बगीचे, नावें आदि सभी कुछ था।
ऐसा नहीं है कि कश्मीरी मुसलमानों को कुछ मिला हो। कश्मीरी मुसलमान भी उतना ही बदतर जीवन जी रहा है, जितना कि कश्मीरी पंडित। कश्मीरी पंडितों की जमीन और मकानों पर कब्जा करने वाले कौन हैं? स्थानीय मुसलमान या राज्य सरकार?
घाटी से पलायन करने वाले कश्मीरी पंडित जम्मू और देश के अन्य इलाकों में विभिन्न शिविरों में रहते हैं। 22 साल से वे वहां जीने को विवश हैं| कश्मीरी पंडितों की संख्या 4 लाख से 7 लाख के बीच मानी जाती है, जो भागने पर विवश हुए। एक पूरी पीढ़ी बर्बाद हो गई।
1947 में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से भगाए गए कश्मीरी पंडित जम्मू में रहते हैं। इसके बाद भारत अधिकृत कश्मीर से भगाए गए पंडित भी जम्मू में रहते हैं लेकिन वहां भी उनका जीवन मुश्किलों से भरा हुआ है। कौन सुध लेगा इन पंडितों की।