वन्य जीवों के साथ रहता है एक परिवार

सोमवार, 6 फ़रवरी 2017 (19:09 IST)
डॉ. प्रकाश आमटे और उनकी पत्नी डॉ. मंदाकिनी आमटे के रहन-सहन का तरीका अनूठा है। उन्होंने अपने ही घर के पिछवाड़े में वन्यजीवों की शरणस्थली बना रखी है, जहां पर दोनों ही अपने वन्य प्राणियों के साथ दशकों से रहते हैं। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के हेमलकासा गांव में रहने वाले ये दंपति देश के प्रसिद्ध समाजसेवी बाबा (मुरलीधर) आमटे के पुत्र और पुत्रवधू हैं और यहां रहकर वे आदिवासी लोगों और स्थानीय वन्य पशु संपदा का भी संरक्षण कर रहे हैं। 

सत्तर के दशक की शुरुआत में जब गढ़चिरौली के दंडकारण्य वनों में दोनों टहल रहे थे तभी उनका सामना शिकार कर लौटे आदिवासियों के एक झुंड से हो गया। उनके हाथों में मृत बंदरों का एक जोड़ा था और उनका बच्चा जीवित था और अपनी मां का दूध पीने की कोशिश कर रहा था। डॉ. प्रकाश ने आदिवासियों से पूछा कि वे इन मरे बंदरों का क्या करेंगे? उनका उत्तर था कि हमने तो इन्हें अपने भोजन के लिए मारा है। जब उन्होंने पूछा कि वे छोटे बच्चे का क्या करेंगे तो उनका कहना था, इसे भी खा लेंगे।
 
इस घटना ने आमटे परिवार का जीवन बदल दिया। माडिया गोंड आदिवासी किसी मनोरंजन या मानसिक विकास के लिए पशु को नहीं मारते वरन इन्हें खाकर वे अपनी भूख मिटाते हैं। इस घटना के दौरान डॉ. प्रकाश ने उनसे कहा कि अगर वे उन्हें बंदर का बच्चा देंगे तो वे उन्हें बदले में चावल और कपड़े दे देंगे। थोड़ी झिझक के साथ आदिवासियों ने उनकी बात मान ली। लाल मुंह वाला बंदर का बच्चा हेमलकासा गांव में उनके घर का हिस्सा बन गया। डॉ. प्रकाश ने इसका नाम बबली रखा जो कि आदिवासियों की देवी का नाम था, जिसकी वे पूजा करते थे। 
 
किसी को भी नहीं पता था कि आमटे परिवार द्वारा अपने घर के पिछवाड़े बने जानवरों की अभयारण्य 'एनीमल आर्क' में पलने वाली बबली पहली पशु थी। धीरे-धीरे यह सैकड़ों अनाथ और घायल पशुओं का घर बन गया। डॉ. प्रकाश ने माडिया आदिवासियों से कहा कि वे खाने के लिए जानवरों के बच्चों को न मारे और अगर उन्हें घायल, अनाथ जानवर दिखें तो वे उनके पास ले आएं। ऐसा करने पर वे उन्हें खाना और कपड़े देंगे। 
 
एक समय तक हेमलकासा और आमटे परिवार के साथ करीब 300 प्राणी रहते थे। इनमें सियार, तेंदुए, जंगली बिल्लियां, साहियां, मैकाक बंदर, भालू, बड़े आकार की छिपकलियां, चूहों जैसे पूंछ वाले लंगूर, चार सींगों वाले बारहसिंगे, काले रंग के बारहसिंघे, चूहों के आकार वाले सांप, भारतीय अजगर, घड़ियाल, मांसभक्ष‍ी छिपकलियां, जहरीले करैत सांप, मोर, चित्तीदार हिरण और नीलगाय भी इस पार्क में शामिल हैं।
 
भारत में शायद ही कोई ऐसा इलाका हो जहां जानवर और मनुष्य इतनी सहजता से रहते हैं कि इससे सरकार को नियम कानूनों की चिंता होने लगती है। यहीं पर डॉ. प्रकाश आमटे के बेटे अनिकेत और पौत्र अर्णव यहां वन्य प्राणियों के बीच रहते हैं और उनकी देखरेख करते हैं। उन्होंने जहां कुष्ठरोगियों के लिए अस्पताल बनाया और उनकी सेवा की। वे यहां आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल भी चलाते हैं।
 
डॉ. प्रकाश और डॉ. मंदाकिनी ने मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई की है और उनके तीनों बच्चे दिगंत, अनिकेत और आरती और उनकी पत्नियां और पति भी यहीं रहते हैं। बाबा आमटे की तीसरी पीढ़ी यहां समाज सेवा कर रही है जिनकी सादगी, संतों जैसे जीवन से प्रभावित होकर 2008 में प्रकाश और मंदाकिनी को रैमन मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया। 
(साभार : द बैटर इंडिया)

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