स्थानीय लोगों के अनुसार मन्नत पूरी होने के बाद बेटे के साथ माता-पिता को यहां माथा टेकने आना होता है। बेटा होने पर दंपति यहां से ले जाए हुए लोकड़े के साथ ही एक अन्य लोकड़ा भी अपने बेटे के हाथों देवी के चरणों में चढ़वाते हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो इस मंदिर का निर्माण 1805 में लंढौरा रियासत के राजा ने करवाया था।