जम्मू। पिछले पौने 4 महीनों से कश्मीर में हिंसा में तेजी आई है। आंकड़ों पर एक नजर दौड़ाएं तो इस अवधि के भीतर आतंकी करीब 6 दर्जन हमलों को अंजाम दे चुके हैं। करीब 13 लोगों को भी मौत के घाट उतारा जा चुका है तथा 32 हथगोलों के हमले भी हो चुके हैं। इस दौरान 14 सुरक्षाकर्मी शहीद हो चुके हैं। अधिकतर हमले, हत्याएं दक्षिण कश्मीर में हुई हैं। दक्षिण कश्मीर में ही अमरनाथ यात्रा होती है और अभी तक मारे गए 64 आतंकियों में से आधे से अधिक दक्षिण कश्मीर में ही मारे गए हैं।
दरअसल, भीषण गर्मी के कारण इस बार एलओसी पर बर्फ के तेजी से पिघलने के कारण घुसपैठ का खतरा भयानक रूप से मंडराने लगा है। अधिकारियों ने इसे माना है कि कश्मीर के कई सेक्टरों से कई दर्जन आतंकी पिछले दिनों घुसने में कामयाब रहे थे और उनके खात्मे के लिए सेना बहुत बड़े अभियान को भी छेड़ चुकी है। हालांकि कश्मीर की घुसपैठ के बाद आरंभ हुई सैनिक कार्रवाई की सच्चाई यह है कि सेना अभी तक इन आतंकियों को खोज नहीं पाई है।
रक्षाधिकारियों के बकौल ऐसी की घटना पुन: न हो, इसके लिए पूरी बर्फ के पिघलने से पहले ही पारंपरिक घुसपैठ के रास्तों पर नजर रखने के लिए अतिरिक्त सुरक्षाबलों को तैनात कर देना जरूरी है। कितने अतिरिक्त सैनिकों को एलओसी और बॉर्डर पर भेजा गया है, कोई आंकड़ा सरकारी तौर पर मुहैया नहीं करवाया गया है, पर सूत्र कहते हैं कि ये संख्या हजारों में है।
आतंकी हमलों में तेजी ऐसे समय में आई है जबकि प्रशासन अमरनाथ यात्रा की तैयारियों में जुटा हुआ है। अभी तक प्रदेश में शांति के लौटने के दावे करने वाला प्रशासन अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के प्रति बेफिक्र था लेकिन आतंकी हमलों में आई अचानक और जबर्दस्त तेजी ने उसके पांव तले से जमीन खिसका दी है। नतीजतन केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी प्रदेश प्रशासन की मदद को आगे आना पड़ा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के कई अधिकारी पिछले कई दिनों से प्रदेश में डेरा डाले हुए हैं और उनके द्वारा कई सूचनाओं को कश्मीर पुलिस के साथ साझा करने के बाद यात्रियों की सुरक्षा की खातिर थ्री टियर सुरक्षा व्यवस्था पर मंथन शुरू किया गया है।