बचपन की लाडली ननदिया बड़ी होकर भाभी पर हावी हो जाती है और भाभी भी अपने अधिकारों की खातिर अपनी अकड़ दिखाती है, सच है न ... यही कहानी होती है न हमारे घरों में ननद-भाभी की नोक-झोंक की। उनकी मीठी नोक-झोंक कब अड़बाजी व तकरार में बदल जाती है, पता ही नहीं चलता।
क्या हमने कभी सोचा है, ननद-भाभी के इन विवादों के पीछे क्या कारण है? यदि आप कारण टटोलेंगे तो आपको जवाब मिलेगा 'मैं का भाव'। यह भाव जब तक आपमें रहेगा तब तक आप किसी के भी साथ अपने रिश्तों की गाड़ी को लंबी दूरी तक नहीं चला पाएँगे।
यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि हमें कभी न कभी अधिकारों का हस्तांतरण करना ही पड़ता है। हम हमेशा मालिक बनकर बैठे रहेंगे तो हम कभी किसी का प्यार व विश्वास हासिल नहीं कर पाएँगे। हमारी थोड़ी-सी विनम्रता व अधिकारों का विभाजन हमारे रिश्तों को मधुर बना सकता है।
ननद और भाभी के झगड़ों की कई सामान्य वजहें होती हैं जैसे शादी से पहले तो घर की हर चीज पर ननद का अधिकार होता है परंतु शादी के बाद हालात बदल जाते हैं। अब ननद घर की मेहमान बन जाती है और भाभी घर की मालकिन। ऐसे में हर छोटी-बड़ी बात पर ननद का हस्तक्षेप घर की बहू से बर्दाश्त नहीं होता। बस यहीं से शुरुआत होती है इस रिश्ते में कड़वाहट की।
कहते हैं ताली दोनों हाथों से बजती है। हमेशा ननद की ही गलतियाँ हों, ऐसा नहीं है। कभी-कभार भाभी का अपने मायके वालों के प्रति अभिमान व घर के हर छोटे-बड़े फैसलों में अपने सास-ससुर की उपेक्षा ननद के भाभी पर क्रोध का कारण बनती है।
रिश्तों को जोड़ने से पूर्व हमें उसके दूरगामी परिणामों के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि हमें इनकी राह पर लंबी दूरी तक चलना होता है। जीवनभर आपके माँ-बाप आपके साथ रहेंगे यह संभव नहीं है, अत: इस बात को ध्यान में रखकर यदि परिवार के सभी सदस्यों से मृदु व्यवहार कायम किया जाए तो यह रिश्ता नोक-झोंक के बजाय हँसी-ठिठौली का रिश्ता बन सकता है।
रिश्ते बनाकर तोड़ने की चीज नहीं होते हैं। यह तो ताउम्र निभाने के लिए होते हैं। जब जीवनभर इन रिश्तों को निभाना है तो क्यों न प्यार के अमृत से बैर का जहर दूर किया जाए और ननद-भाभी के रिश्ते को दो बहनों का रिश्ता बनाया जाए।