गोचर का ज्योतिष शास्त्र में विशेष महत्व माना गया है। गोचर शब्द 'गम्' धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है गतिमान या चलने वाला। वहीं 'चर' शब्द से आशय भी निरंतर गति से होता है। सभी ग्रह निरंतर गतिमान रहते हुए एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते रहते हैं। ग्रहों के इसी राशि परिवर्तन को 'गोचर' कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में राहु-केतु को छाया ग्रह माना गया है, इसलिए कुछ विद्वान राहु-केतु के 'गोचर' को अधिक मान्यता नहीं देते हैं किंतु यवनाचार्य जैसे अधिकतर विद्वान ज्योतिष के प्रसिद्ध सिद्धांत 'शनिवत् राहु, कुजवत् केतु' के आधार पर राहु-केतु के गोचर को मान्यता प्रदान करते हैं। राहु-केतु सदैव वक्री गति अर्थात् उल्टे चलते हैं।
23 सितंबर 2020 को राहु गोचरवश अपनी वक्रगति के चलते मिथुन से वृषभ राशि एवं केतु-धनु से वृश्चिक राशि में प्रवेश किया है। राहु को ज्योतिष शास्त्र में शनि के समान व केतु को मंगल के समान स्वभाव वाला ग्रह माना गया है। छाया ग्रह होने के कारण राहु-केतु जिस भाव में; जिस भावेश के साथ होते हैं उसी के अनुरूप फलित करते हैं।