* कार्तिक शुक्ल षष्ठी, सूर्य उपासना का पावन छठ पर्व
भारत भर में प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल षष्ठी को गंगा-यमुना के तटवासी आर्य संस्कृति का प्रतीक महान पर्व सूर्य षष्ठी/छठ पर्व अत्यंत धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन वे अस्ताचल भगवान भास्कर की पूजा करते हैं तथा कार्तिक शुक्ल सप्तमी को उदीयमान प्रत्यक्ष देव भगवान आदित्य को अर्घ्य देकर पूजन-अर्चन करते हुए अपनी और अपने देश की खुशहाली की कामना करते हैं।
विश्व की अनेक श्रेष्ठ मानी जाने वाली प्रजातियां अपने को आर्यवंशी कहती हैं। जर्मनी के नाजी, ईरानी, फ्रांसीसी, इटैलियन सभी दावा करते हैं कि वे आर्य वंशज हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि इनमें से किसी के पास आर्य संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक अवशेष कुछ भी नहीं है।
गंगा-यमुना का अतिपावन तट ही आर्यों का इच्छित स्थल था। प्रत्यक्षदेव व विश्व देवता के नाम से विख्यात भगवान भास्कर का पूजन-अर्चन पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार के करोड़ों स्त्री-पुरुष अत्यंत पवित्रता से प्रतिवर्ष करते हैं। यह त्योहार जाति और संप्रदाय से परे है और भारत की अनेकता में एकता का जीवंत उदाहरण है।
ब्रिटिश काल में गिरमिटिया मजदूर के रूप में गए पूर्वांचल के भारतवंशियों ने अपने रीति-रिवाज, तीज-त्योहार और प्रतीकों के बल पर सूर्य षष्ठी को विश्वव्यापी बना दिया है। छठ का महान त्योहार मॉरीशस, फिजी, त्रिनिदाद आदि अनेक देशों में हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
भगवान सूर्य की आराधना करते हुए मन में गद्य यजुष की रचना की आकांक्षा लिए हुए विश्वामित्र के मुख से अनायास ही वेदमाता गायत्री प्रकट हुई थीं। ऐसे यजुष (ऐसा मंत्र जो गद्य में होते हुए भी पद्य जैसा गाया जाता है) को वेदमाता होने का गौरव प्राप्त हुआ था। यह पावन मंत्र प्रत्यक्ष देव आदित्य के पूजन, अर्घ्य का अद्भुत परिणाम था, तब से कार्तिक शुक्ल षष्ठी की तिथि परम पूज्य हो गई।