व्रत-त्योहार

पुरिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि। सच्चस्स आणाए से उवट्ठिए मेहावी मारं तरइ॥ सत्य के बारे में महावीरजी कहते...
हिंसा के बारे में महावीरजी ने कहा है इस लोक में जितने भी त्रस जीव (दो, तीन, चार और पाँच इंद्रिय वाले...
ब्रह्मचारी ने पिछले जीवन में स्त्रियों के साथ जो भोग भोगे हों, जो हँसी-मसखरी की हो, ताश-चौपड़ खेली हो...
चाहे शत्रु हो या मित्र, वैरी हो या मीत सभी जीवों पर, सभी प्राणियों पर समभाव रखना, सभी को अपने जैसे स...
क्रोध से मनुष्य नीचे गिरता है। अभिमान से अधम गति को पाता है। माया से सत्‌गति का नाश होता है तथा लोभ ...
यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचितः समं भान्ति ध्रौव्य व्यय-जनि-लसन्तोऽन्तरहिताः। जगत्साक्षी मार्ग-...