नेत्ररोग दूर करने हेतु

हेतु- नेत्ररोग दूर होते हैं।

सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश! कर्तु स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः ।
प्रीत्यात्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्रं नाभ्येति किं निजाशशोः परिपालनार्थम्‌ ॥ (5)

शक्तिरहित पर भक्ति सहित मैं मेरी मर्यादा को लाँघकर भी आपकी स्तवना करने को समर्पित बना हूँ... वह बेचारा भोला-भोला हिरन भी अपने नन्हें से छौने को बचाने के लिए अपनी ताकत एवं औकात की परवाह किए बगैर क्या शेर का सामना नहीं करता है?

ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो अणंतोहिजिणाणं ।

मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्रौं सर्वसंकटनिवारणेभ्यो सुपार्श्वयक्षेभ्यो नमो नमः स्वाहा ।

वेबदुनिया पर पढ़ें