अग्नि का भय दूर करने हेतु

हेतु- अग्नि का भय दूर होता है।

कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-वह्निकल्पं दावानलं ज्वलितमुज्ज्वलमुत स्फुलिंगम्‌ ।
विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुखमापतन्तं त्वन्नाम-कीर्तन-जलं शमयत्यशेषम्‌ ।। (40)

प्रलयंकारी पवन के वेग से उद्धत, जिसकी ज्वालाएँ भूखे दावानल की भाँति जबड़े फैलाए समूचे विश्व को निगलने के लिए लपक रही हों, वैसी आग भी आकर घेर ले... उस समय तेरे नाम के संकीर्तनरूप पानी को छिड़कने मात्र से वह अग्नि शांत हो जाती है।

ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो कायबलीणं ।

मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ह्राँ ह्रीं अग्निमुपशमन शांतिं कुरु कुरु स्वाहा ।

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