19 फरवरी को है नर्मदा जयंती, जानिए पवित्र नदी की उत्पत्ति और महत्व

19 फरवरी 2021 को नर्मदा जयंती है। वैसे तो नर्मदा-जयंती का महत्त्व सम्पूर्ण देश में है किन्तु मां नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक मध्यप्रदेश में स्थित होने के कारण यह पर्व मध्यप्रदेशवासियों के लिए विशेष महत्त्व रखता है। पूरे प्रदेश में "नर्मदा-जयंती" बड़े धूमधाम से मनाई जाती है विशेषकर नर्मदातटों पर बसे शहरों व स्थानों में जैसे होशंगाबाद (नर्मदापुर), महेश्वर, अमरकण्टक, ओंकारेश्वर आदि। 
 
इस दिन प्रात:काल मां नर्मदा का पूजन-अर्चन व अभिषेक प्रारंभ हो जाता है। सायंकाल नर्मदा तटों पर दीपदान कर दीपमालिकाएं सजाई जाती हैं। ग्रामीण अंचलों में भंडारे  व भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। पाठकों यह जानकर आश्चर्य होगा कि पूरे विश्व में मां नर्मदा ही एकमात्र ऐसी नदी हैं जिनकी परिक्रमा की जाती है।
 
मां नर्मदा की उत्पत्ति-
 
मां नर्मदा की उत्पत्ति की कथा हमारे शास्त्रों में वर्णित है। स्कंद पुराणान्तर्गत "रेवाखंड" में इसका उल्लेख हमें प्राप्त होता है। कथानुसार एक बार समस्त देवों ने भगवान विष्णु से अपने धर्मविरूद्ध अनुचित कार्यों से मुक्ति की निवृत्ति के लिए प्रार्थना की तब भगवान विष्णु ने इस हेतु भगवान शिव से इसका समाधान निकालने को कहा; जो उस समय अन्धकासुर नामक असुर का वध करने के उपरान्त मेकल पर्वत (अमरकंटक) पर विराजमान थे। 
 
भगवान विष्णु के निवेदन करते ही भूत-भावन भगवान शिव के मस्तक पर शोभायमान सोमकला से एक जलकण भूमि पर गिरा और तत्क्षण एक सुन्दर कन्या के रूप में परिवर्तित हो गया। उसे कन्या के प्रकट होते ही सभी देवतागण उसकी स्तुति करने लगे तभी भगवान शिव ने उसे नर्मदा नाम देते हुए कहा कि तुम्हारा किसी भी प्रलय में नाश नहीं होगा और तुम अमर होगी। 
 
भगवान शिव की सोमकला से उद्भव होने के कारण मां नर्मदा को "सोमोभ्द्वा" एवं मेकल पर्वत (अमरकंटक) से उद्गम होने के कारण "मेकलसुता" के नाम से भी जाना जाता है। अपने चंचल आवेग के कारण इनका रेवा नाम भी प्रसिद्ध है। ऋषि वशिष्ठ के अनुसार मां नर्मदा का प्राकट्य माघ शुक्ल सप्तमी, अश्विनी नक्षत्र, मकराशिगत सूर्य, रविवार के दिन हुआ था। अत: इसी दिन मां नर्मदा के जन्मोत्सव के रूप में "नर्मदा-जयंती" मनाई जाती है।
 
मां नर्मदा का महत्व-
 
"गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती, नर्मदा सिन्दु कावेरी जलेस्मित सन्निधिकुरू:॥" के कथनानुसार मां नर्मदा सात पवित्रतम नदियों में से एक हैं। जिनके दर्शन मात्र से पुण्यफल प्राप्त होता है। शास्त्र का वचन है-
 
"त्रिभि: सारस्वतं पुण्यं सप्ताहेन तु यामुनम।
सद्य: पुनाति गांग्गेय दर्शनादेव नर्मदा॥" 
 
अर्थात् सरस्वती का जल तीन दिन में, यमुना का जल एक सप्ताह में, गंगाजल स्नान करते ही पवित्र करता है किन्तु मां नर्मदा के जल का दर्शन मात्र ही पवित्र करने वाला होता है। कलियुग में मां नर्मदा के दर्शन मात्र से तीन जन्म के और नर्मदा स्नान से हजार जन्मों के पापों की निवृत्ति होती है।

शास्त्र के वचानुसार मां गंगा हरिद्वार में, मां सरस्वती कुरूक्षेत्र में, मां यमुना ब्रजक्षेत्र में अधिक पुण्यदायिनी है किन्तु मां नर्मदा सर्वत्र पूजित व पुण्यमयी हैं। शास्त्रानुसार "सप्त कल्पक्षये क्षीणे न मृता तेन नर्मदा" प्रलयकाल में समस्त सागर व नदियां नष्ट हो जाती हैं किन्तु मां नर्मदा  अपने नामानुसार कभी भी नष्ट नहीं होती हैं।
 
नर्मदा-प्रदूषण घोर पाप है-
 
पर्यावरण व प्रकृति परमात्मा का प्रकट रूप है। इसका शोषण कर इसे प्रदूषित करना घोर पाप की श्रेणी में आता है। वर्तमान समय में भौतिकतावादी मानसिकता के चलते मनुष्य अपने निजी लाभ के चलते नदियों को प्रदूषित कर रहा है। पर्यावरण का शोषण कर जंगलों को काट रहा है जिससे नदियां सूख रही हैं। हमारे शास्त्रों में जिन पवित्र नदियों को पाप से मुक्ति के लिए समर्थ माना गया है उन पवित्र नदियों के तट पर जाकर यदि उन्हें प्रदूषित किया जाता है तो यह घोर पाप की श्रेणी में आता है जिसकी निवृत्ति जन्म-जन्मान्तरों में भी सम्भव नहीं है उसे अवश्य रूप से भोगना ही पड़ता है। पवित्र नदियों में वस्त्र धोना, मल-मूत्र त्याग करना, वाहन धोना, अपवित्र जल की निकासी करना, अपशिष्ट पदार्थों को बहाना ये सभी पाप की श्रेणी में आते हैं जिनकी मुक्ति कई जन्मों में भी सम्भव नहीं होती इन पापों का दुष्परिणाम करने वालों को भोगना ही पड़ता है। अत: सभी श्रद्धालुओं को इस प्रकार के घोर पापों से बचना चाहिए। !!नर्मदे हर!!
नर्मदा जयंती शुक्रवार, फरवरी 19, 2021 को 
सप्तमी तिथि प्रारंभ : फरवरी 18, 2021 को सुबह 08:17 बजे
सप्तमी तिथि समाप्त : फरवरी 19, 2021 को सुबह 10:58 बजे
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: [email protected] 

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