श्राद्ध पक्ष में करते हैं ये 12 महत्वपूर्ण कार्य

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक कुल 16 दिनों तक चलता है। इस बार पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2021 Start Date) 20 सितंबर 2021, सोमवार को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होंगे। पितृ पक्ष का समापन 6 अक्टूबर 2021, बुधवार को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को होगा।
 
 
1. पंचबलि कर्म : श्राद्ध में पंचबलि कर्म किया जाता है। अर्थात पांच जीवों को भोजन दिया जाता है। बलि का अर्थ बलि देने नहीं बल्कि भोजन कराना भी होता है। श्राद्ध में गोबलि, श्वान बलि, काकबलि, देवादिबलि और पिपलिकादि कर्म किया जाता है। पितृ पक्ष के दौरान कोओं को प्रतिदिन खाना डालना चाहिए। मान्यता है कि हमारे पूर्वज कौवों के रूप में धरती पर आते हैं।
 
2. ब्राह्मण भोज : पंचबलि कर्म के बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है। इस दिन सभी को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण का निर्वसनी होना जरूरी है और ब्राह्मण नहीं हो तो अपने ही रिश्तों के निर्वसनी और शाकाहार लोगों को भोजन कराएं।
 
3. हनुमान चलीसा का पाठ : इस दौरान हनुमान चालीसा का पाठ नियमित करना चाहिए। ऐसा करने से घर-परिवार में कभी कोई संकट नहीं आता है।
 
4. दस प्रकार के दान : जूते-चप्पल, वस्त्र, छाता, काला‍ तिल, घी, गुड़, धान्य, नमक, चांदी-स्वर्ण और गौ-भूमि। इस दौरान दान-पुण्य का कार्य करना चाहिए। गरीबों या जरूरतमंदों को खाद्य सामग्री, वस्त्र आदि दान करनी चाहिए। श्राद्ध में जो लोग भोजन कराने में अक्षम हों, वे आमान्न दान देते हैं। आमान्न दान अर्थात अन्न, घी, गुड़, नमक आदि भोजन में प्रयुक्त होने वाली वस्तुएं इच्छा‍नुसार मात्रा में दी जाती हैं।
 
5. गीता का पाठ : आप चाहे तो संपूर्ण गीता का पाठ करें नहीं तो पितरों की शांति के लिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए और उन्हें मुक्ति प्रदान का मार्ग दिखाने के लिए गीता के दूसरे और सातवें अध्याय का पाठ जरूर करें।
 
6. यहां करें श्राद्ध अनुष्‍ठान : देश में श्राद्ध पक्ष के लिए लगभग 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है। इनमें से उज्जैन (मध्यप्रदेश), लोहानगर (राजस्थान), प्रयाग (उत्तर प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड), पिण्डारक (गुजरात), नाशिक (महाराष्ट्र), गया (बिहार), ब्रह्मकपाल (उत्तराखंड), मेघंकर (महाराष्ट्र), लक्ष्मण बाण (कर्नाटक), पुष्कर (राजस्थान), काशी (उत्तर प्रदेश) को प्रमुख माना जाता है।
 
7. पितृदेव अर्यमा का पूजन : श्राद्ध के दौरान पितृलोक के चार देवता काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम का आह्वान किया जाता है। इनमें से अर्यमा पितरों के अधिपति हैं। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि पितरों में प्रथान में अर्यमा हूं। दिव्य पितर- अग्रिष्वात्त, बर्हिषद, आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक व नांदीमुख ये 9 दिव्य पितर बताए गए हैं। दिव्य पितृ ब्रह्मा के पुत्र मनु से उत्पन्न हुए ऋषि हैं।
8. श्राद्ध का समय : श्राद्ध करने का समय तुरूप काल बताया गया है अर्थात दोपहर 12 से 3 के मध्य। प्रात: एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है। सुनिश्चित कुतप काल में धूप देकर पितरों को तृप्त करें।
 
9. तर्पण : पितृ पक्ष में प्रतिदिन नियमित रूप से पवित्र नदी में स्नान करके पितरों के नाम पर तर्पण करना चाहिए। इसके लिए पितरों को जौ, काला तिल और एक लाल फूल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके जल अर्पित करना चाहिए। पितरों के लिए किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध तथा तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं।

श्राद्ध के 12 प्रकार हैं- नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, पार्वण, सपिंडन, गोष्ठ, शुद्धि, कर्मांग, दैविक, यात्रा और पुष्टि। उसी तरह तर्पण के 6 प्रकार हैं- 1. देव-तर्पण 2. ऋषि-तर्पण 3. दिव्य-मानव-तर्पण 4. दिव्य-पितृ-तर्पण 5. यम-तर्पण 6. मनुष्य-पितृ-तर्पण। इसके अलावा गरुड़ पुराण के प्रेत कल्प में शव का चिता की अग्नि में दाह संस्कार की विधि, अस्थि संचय की विधि, दशगात्र की विधि, मलिनषोडशी, मध्यमषोडशी श्राद्ध, उत्तमषोडशी श्राद्ध, नारायणबलि श्राद्ध, सपिण्डी श्राद्ध (पिण्ड मेलन) आदि सम्पूर्ण और्ध्वदैहिक श्राद्ध पिण्डदान, तर्पण के बारे में विस्तार पूर्वक लिखा गया है।
 
10. पिंडदान : पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान भी किया जाता है। पितृ पक्ष में पिंडदान का भी महत्व है। सामान्य विधि के अनुसार पिंडदान में चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें पितरों को अर्पित किया जाता है। यह पिंडदान भी कुछ प्रकार का होता है। धार्मिक मान्यता है कि चावल से बने पिंड से पितर लंबे समय तक संतुष्ट रहते हैं।

11. प्रायश्चित कर्म : शास्त्रों में मृत्यु के बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्म विपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है। प्राचीन काल में अपने किसी पाप का प्रायश्‍चित करने के लिए देवता, मनुष्य या भगवान अपने अपने तरीके से प्रायश्चित करते थे। जैसे त्रेता युग में भगवान राम ने रावण का वध किया, जो सभी वेद शास्त्रों का ज्ञाता होने के साथ-साथ ब्राह्मण भी था। इस कारण उन्हें ब्रह्महत्या का दोष लगा था। इसके उपरांत उन्होंने कपाल मोचन तीर्थ में स्नान और तप किया था जिसके चलते उन्होंने ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति पाई थी। प्रायश्‍चित किए बिना जीव मुक्ति नहीं पिछले जन्मों के पाप और पुण्य भी हमारे अंतर्मन में संग्रहित रहते हैं। जिस प्रकार सूर्य कोहरे को हटा देता है और बर्फ को पिघला देता है, उसी प्रकार प्रभु श्रीराम और श्रीकृष्ण की भक्ति हमारे अंतर्मन से न केवल अनावश्यक विचारों को नष्ट करती है, अपितु पापों को भी नष्ट करती है। वास्तव में जब हम भक्तिपूर्वक उनका नामजप करते हैं, तब पाप करने की इच्छा ही नष्ट हो जाती है।
 
12. पीपल की पूजा : सर्वपितृ अमावस्या पर पीपल की सेवा और पूजा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। स्टील के लोटे में, दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ मिला लें और पीपल की जड़ में अर्पित कर दें।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी