-डॉ. रामकृष्ण सिंगी
यज्ञ कर्म एवं हवन वैदिक काल से प्रेरित कर्मकांडीय अनुष्ठान हैं, जो इस देश को प्राचीन ऋषियों की देन हैं और संसार को इस देश की। यह अपने आप में एक समग्र उपासना विधि है, जो भौतिक संसार के सर्जक और संसार के संचालक महाशक्तियों के अनुनय के लिए रूपायित और विकसित की गई। युगों तक हमारे देश के आराधना संसार, जीवन व्यवहार तथा वायुमंडल को यज्ञ के विधि-विधान और आयोजन सुवासित करते रहे हैं और बाद में वे ही विभिन्न पूजा प्रणालियों, आराधना पद्धतियों, आध्यात्मिक आयोजनों के प्रेरक बने। यज्ञ कर्म अत्यंत सूक्ष्मता से रूपायित, निर्धारित विधि-विधानों, प्रक्रियाओं, मंत्र-मालाओं से व्यवस्थाबद्ध व एक अनुशासित उपासना-आराधना विधि है जिसका एक विस्तृत एवं विशिष्ट दर्शन है। अब यह उपासना विधि विभिन्न कारणों जैसे इसके दीर्घसूत्रीय/ जटिल होने, प्रक्रिया एवं मंत्रों के ज्ञाता पुरोहितों की कमी होने, अनुष्ठान में भौतिक साधनों के व्ययकारी होने आदि के कारण बड़े आयोजनों तक ही सीमित हो गई है। फिर भी इस चर्चा को यहां उठाने का मेरा एक विशिष्ट मंतव्य है जिस पर मैं पाठकों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। आगे पढ़िए...
गीता के चौथे अध्याय में कुछ लाक्षणिक यज्ञों की चर्चा की गई है। यज्ञों का यह संकेत मानसिक यज्ञों की ओर है, जो चिंतनशील बुद्धिजीवी लोगों के लिए उपयोगी भी है, करणीय भी, तुष्टिदायक भी और भौतिक, द्रव्य यज्ञों के मनोविज्ञान से निवृत्ति का कारक भी। गीता ने इन्हें श्रेष्ठतर घोषित किया है।
* योग साधना द्वारा शारीरिक ओर मानसिक शक्तियों को प्रबल, निर्मल, उर्जायुक्त, स्वस्थ व सुंदर बनाने का प्रयत्न करना योग यज्ञ है।