शनि शिंगणादेव मामला : क्या उचित है शुद्धिकरण?

महाराष्ट्र के प्रख्यात सिद्ध पीठ शनि शिंगणापुर में एक महिला द्वारा तेल चढ़ाने और उसके बाद मंदिर के शुद्धिकरण किए जाने के विवाद ने तूल पकड़ लिया है। महिलावादी और धर्मावलंबी आमने-सामने हैं कि जो कुछ हुआ वह सही है या गलत... बात यहां महिलावाद से ज्यादा कुछ नियमों और कायदों की है। पौराणिक मान्यताओं की है। पुराणों और शास्त्रों में शनि का स्पर्श अगर वर्जित है तो जरूर‍त क्या है अपना महिलावाद वहीं जाकर दिखाने की? दुनियाभर में सैकड़ों भगवान के मंदिर है, वहां जाइए भगवान की पूजा कीजिए। लेकिन यह तथ्य भी गौरतलब है कि हर बड़े मंदिर में चाहे वह दक्षिण का हो या उत्तर का, कभी सुरक्षा के लिहाज से तो कभी धार्मिक कारणों से उन तक जाने पर प्रतिबंध है। प्रतीकात्मक रूप से ही शनि को तेल चढ़ाने का रिवाज है। 

मध्यप्रदेश के इंदौर स्थित शनि मंदिर में एक छोटी प्रतिमा भक्तगणों के लिए लगाई गई है जहां पर वह अपनी मर्जी और सुविधा के अनुसार तेल चढ़ा सकते हैं और इनमें महिलाएं भी शामिल होती हैं। सवाल यह कि आस्था के साथ खेल करना ही क्यों जब किसी मंदिर में 400 साल से कोई नियम का पालन किया जा रहा है तो क्यों वहां जाकर मर्यादा और मान्यता को तोड़ना? आखिर इससे मिल क्या गया? इस तरह का दुस्साहस करने वाले महज वही हो सकते हैं जिनके लिए वह सिर्फ प्रतिमा है देव नहीं... सवाल यह भी है कि अगर महिला ने अज्ञानतावश ऐसा किया है तो क्षमा मांग लेना ज्यादा उचित है ना कि इस बात पर अड़ना कि क्या हुआ अगर एक महिला ने तेल चढ़ा दिया। 
 
थोड़ी सी उदारता और समझदारी मंदिर प्रशासकों को भी बरतनी होगी। इतना तो वे भी जानते हैं कि भूल के लिए तो भगवान भी माफ कर देते हैं और जानबूझकर की गई गलतियों के लिए वे दंड भी देते हैं। भगवान पर ही भरोसा रख कर महिला की इस गलती को इतना प्रचारित नहीं करना चाहिए। जहां तक शुद्धिकरण की बात है अगर महिला को अशुद्ध मानकर यह किया गया है तो किंचित अनुचित है पर अगर नियमों में ऐसा उल्लेखित है कि स्पर्श के बाद प्रतिमा को शुद्ध करें तो फिर हमें कुछ नहीं कहना...आप क्या मानते हैं, क्या शनि शिंगणादेव का महिला द्वारा स्पर्श इतनी बड़ी बात नहीं है जितनी बड़ी उसे दिखाया जा रहा है, या आप मानते हैं कि महिला को कृत्य अनुचित है और शुद्धिकरण होना चाहिए....      

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