श्री गुरु ग्रंथ साहिब में फाग

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फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होली अथवा होलिकोत्सव मनाया जाता है। फाल्गुन मास के अंतिम दिन में मनाए जाने के कारण भारत के कुछ भागों में इसे फाग या फागुली भी कहा जाता है। होलिका दहन की इसी तारीख को अधिकांश प्रांतों में सामूहिक अग्नि जलाई जाती है और अगले दिन 'धुलेंडी' पर रंगों की होली खेली जाती है।

सिख पंथ के पाँचवें गुरु श्री गुरु अरजन देवजी ने 'होली' के पर्याय के रूप में प्रचलित 'फाग' शब्द का भी प्रयोग करके, प्रकारांतर से भक्त प्रह्लाद की प्रभु-भक्ति को ही ध्यान में रखकर 'होली' का सही स्वरूप संतों की सेवा तथा गुरु भक्ति में रंगे रहने को माना है, श्री गुरुग्रंथ में लिखा है-

आजु हमारै बने फाग ! प्रभ संगी मिली खेलन लाग ॥
होली कीनी संत सेव ! रंगु लागा अति लाल देव ॥2॥

मनु तनु मउलिओ अति अनूप ! सूकै नाही छाव धूप ॥
सगली रूती हरिआ होई ! सद बसंत गुर मिले देव ॥3॥

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पन्ना 1180)

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