तखत सचखंड श्रीहजूर अबचलनगर साहिब-नांदेड़

-हर‍दीप कौ

धर्मयात्रा की इस बार की कड़ी में हम आपको लेकर चलते हैं महाराष्ट्र के नांदेड़ में स्थित सिख पंथ के 10वें गुरु गोबिंदसिंह के पवित्र स्थान जिसे सिख पंथ के पाँच तखत साहिबान में से एक शिरोमणी तखत सचखंड श्रीहजूर अबचलनगर साहिब कहा जाता है।

श्रीगुरु गोबिंदसिंह जी के आलौकिक जीवन के अंतिम क्षणों से संबंधित यह पवित्र स्थान सिख पंथ के पाँच तखत साहिबान में से एक शिरोमणी तखत है। जिसकी प्रसिद्धि भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में है।

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जब श्रीगुरु गोबिंदसिंह जी के माता-पिता और चारों बेटे देश के लिए शहीद हो गए, तब वे संसार का भला करते हुए गोदावरी न‍दी के किनारे बसे नगर नांदेड़ पहुँचे। नांदेड़ में गुरुजी ने लीलाएँ रची। यहाँ आपने गुरुद्वारा नगीना घाट से तीर चलाकर अपने सतगरुओं के समय का तप-स्थान प्रगट किया। वह तीर एक मस्जिद में जा लगा, जहाँ गुरुजी ने ढाई हाथ जमीन खुदवाकर सतयुगी आसन, करमंडल, खड़ाऊ और माला निकाली और वह स्थान प्रगट किया। बदले में उस जमीन के मालिक मुस्लिम को उस स्थान पर सोने की मोहरें बिछाकर दी गई।

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इस स्थान के प्रगट होने पर यहाँ गुरुजी रोज नई-नई लीलाएँ करने लगे। सुबह-शाम दीवान सजने लगे। चारों तरफ आनंदमयी रौनक बढ़ गई। कुछ ही समय बाद सूबा सरहद के नवाब वजीर खान के भेजे कातिलों के हमले के बाद आपने सचखंड गमन की तैयारी की तो अति व्याकुल संगत के पूछने पर आपने फरमाया कि हम आप लोगों को धुर की बानी 'शबद' गुरु के हवाले कर चले हैं, जिससे आपको हर समय अध्यात्मिक अगुवाई की बख्शीष होती रहेगी।

विक्रमी संवत 1765 कार्तिक सुदी दूज (4 अक्टूबर 1708) के दिन आपने पाँच पैसे और नारियल श्रीगुरु ग्रंथ साहिब जी के आगे रखकर माथा टेककर श्रद्धा सहित परिक्रमा की और इस पावन दिन समूह सिख संगत को साहिब श्रीगुरु ग्रंथ साहिब जी से जोड़कर और युग-युगों तक अटल गुरुता गद्दी अर्पण की। इस तरह श्रीगुरु ग्रंथ साहिब को गुरु गद्दी देकर दीवान में बैठी संगत को फरमाया :

आगिआ भई अकाल की तवी चलाओ पंथ।।
सब सिखन को हुकम है गुरू म‍ानियो ग्रंथ।।
गुरू ग्रंथ जी मानियो प्रगट गुरां की देह।।
जो प्रभ को मिलबो चहै खोज शब्द में लेह।

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इसके बाद गुरु साहिब ने सर्वत्र खालसा सिख संगत को वचन दिया कि युगों युग की इस पावन पवित्र हुई धरती का नाम श्रीअबचलनगर हुआ। इस तरह जगत तमाशा देखने के ‍बाद 'विचित्र नाटक' खेलते हुए संवत 1765 कार्तिक सुदी पंचमी के दिन आप परम पुरख परमात्मा में अभेद हो गए।

प्रतिदिन प्रात: दो बजे समीप स्थित गोदावरी नदी से जल की गागर भरकर सचखंड में लाई जाती है। सुखमणि साहिब जी के पाठ की समाप्ति के पश्चात गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया जाता है। अरदास के पश्चात संपूर्ण दिवस गुरुद्वारा पाठ और कीर्तन से गूंजता रहता है। संध्या में रहिरास साहिब का पाठ और आरती के बाद गुरु गोबिंदसिंह, महाराजा रणजीतसिंह और अकाली फूलासिंह के प्रमुख शस्त्रों के दर्शन करवाए जाते हैं।

हाल ही में 30 अक्टूबर 2008 को गुरु ग्रंथ साहिब के प्रकाश के 300 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में गुरुता गद्दी दिवस मनाया गया। पाँच दिवसीय इस समारोह में देश और विदेश से लाखों की संख्या में सिख संगत, संत और विद्वान शामिल हुए। यहाँ ‍सभी गुरु परब के साथ ही दशहरा, दीपावली और होला मोहल्ला बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

कैसे पहुँचे:
वायुमार्ग:- नांदेड़ में राष्ट्रीय विमानतल है। जहाँ से सचखंड की दूरी मात्र 5 किमी. दूरी पर स्थित है।
सड़कमार्ग:- महाराष्ट्र के औरंगाबाद से नांदेड़ करीब 300 किमी. दूरी पर स्थित है। सभी प्रमुख शहरो से सरकारी व निजी वाहनों के जरिए नांदेड़ आसानी से पहुँचा जा सकता है।
रेलमार्ग:- नांदेड़ सभी प्रमुख रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। अमृतसर से नांदेड़ के लिए विशेष रेल सुविधा उपलब्ध है।