आग और आस्था का संगम

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आस्था और अंधविश्वास की कड़ी में इस बार हम आपके समक्ष केरल के पलक्कड़ जिले के शोरनूर गाँव को लेकर आ रहे हैं। यहाँ पर आस्था का चरम है, जहाँ लोग अपने अपराधों के प्रायश्चित के लिए जलते हैं। मगर चमत्कार तो यह है कि यहाँ पर जलती हुई बत्तियों से सिंकाई के पश्चात भी लोगों को कोई हानि नहीं होती है। यहाँ पर अयप्पन विल्क्क नामक परंपरा निभाई जाती है।

इस परंपरा को शबरीमाला का तीर्थ करने से पहले श्रद्धालु संपन्न करते हैं। मुख्यतः केरल के मध्य व उत्तरी क्षेत्रों में इस प्रथा को संपादित किया जाता है।
  करीब एक घंटे तक चलने वाली इस परंपरा में यह बहुत आश्चर्शजनक लगता है कि इतनी देर तक शरीर पर जलती बातियाँ फिराने के बाद भी शरीर को कोई नुकसान नहीं होता।      


इस प्रथा को एक व्यक्ति, एक परिवार, एक संस्था या एक समूह संपन्न कर सकता है। इस परंपरा में शबरीमाला मंदिर का प्रतिरूप नारियल और ताड़ के पत्तों से तैयार करते हैं, जो अपने आप में कला का एक अनुपम उदाहरण है। इसे प्रशिक्षित व्यक्ति ही तैयार करते हैं।

पाल वृक्ष की शाखाओं को लेकर दल निकाला जाता है और परंपरागत 'थालप्पोली' व नगाड़े जैसे वाद्यों को बजाकर संध्या बेला में पूजा-अर्चना करते हैं। अय्यप्पा प्रभु के भजनों और पूजा को प्रतिपादित करने के पश्चात अय्यप्पा और योद्धा बाबर के युद्ध का नाटक किया जाता है।

'गुरुति' के पश्चात अय्यप्पन विल्क्क की रीति संपन्न हो जाती है। यहाँ पर दो पथ-प्रदर्शक या महापुरुष मंदिर के प्रतिरूप के चारों ओर नृत्य करते हुए परिक्रमा करते हैं। साथ ही मार्शल कला का प्रदर्शन करते हैं।

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रात्रि के उत्तरार्द्ध में वे अपने शरीर पर जलती हुई बातियों से मालिश करते हैं। तत्पश्चात वह 'चेंदा' नामक ड्रम की धुन पर नृत्य करते हुए ये बातियाँ फिराते हैं। धीरे-धीरे ड्रम की गति के साथ-साथ उनके कदम भी तेज हो जाते हैं।

करीब एक घंटे तक चलने वाली इस परंपरा में यह बहुत आश्चर्यजनक लगता है कि इतनी देर तक शरीर पर जलती बातियाँ फिराने के बाद भी शरीर को कोई नुकसान नहीं होता। श्रद्धालुओं का मानना है कि प्रभु अय्यप्पा की कृपा से उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचता है।

इतना ही नहीं, जलते हुए कोयले पर भी चलने की एक प्रथा होती है जिसे स्थानीय भाषा में 'कनाल अट्टम' कहा जाता है। इसमें वे महापुरुष अपने सहयोगियों के साथ अय्यप्पन विल्क्क के मैदान में जलते हुए कोयले पर कूदते और नृत्य करते हैं।

कुछ लोगों का मानना है कि निरंतर प्रशिक्षण लेने के बाद ये लोग जलते हुए कोयले पर बिना किसी नुकसान के नृत्य करते हैं, मगर श्रद्धालुओं का मानना है कि यह सब प्रभु अय्यप्पा की कृपा से संभव है। आप इस विषय पर क्या सोचते हैं, हमें जरूर बताइएगा।