गणगौर पूजा का अनूठा रिवाज

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भारत अजीबोगरीब मान्यताओं का देश है। यहाँ कदम-कदम पर अनोखी रस्में निभाई जाती हैं। इन रस्मों में कहीं उल्लास घुला होता है तो कहीं आस्था का रंग तो कहीं परंपरा का चोला। आस्था और अंधविश्वास की इस कड़ी में हम आपको भारत के आदिवासी अंचल की एक अनूठी रस्म दिखाने जा रहे हैं। इस रस्म में आस्था और विश्वास के साथ-साथ कुछ हँसी-ठिठौली भी है।
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जी हाँ! देवास जिले के पुंजापुरा गाँव में गणगौर उत्सव के समय एक अनूठी रस्म निभाई जाती है। गाँव में नौ दिनी गणगौर उत्सव मनाया जाता है और फिर अंतिम दिन निभाई जाती है एक अनूठी रस्म

  रस्म के तहत एक चिकने, ऊँचे खंभे के ऊपर गुड़ की पोटली बाँध दी जाती है। खंभे के आसपास महिलाओं के हाथ में तामेश्वर (बेशरम), अकाव, इमली आदि पेड़ों की लकड़ी होती है। युवकों की टोली जब खंभे पर बँधे गुड़ को निकालने जाती है तब महिलाएँ इनकी पिटाई करती हैं।      
इस रस्म के तहत एक चिकने, ऊँचे खंभे के ऊपर गुड़ की पोटली बाँध दी जाती है। इसी के आसपास महिलाएँ एक घेरा बना लेती हैं। घेरे में खड़ी महिलाओं के हाथ में तामेश्वर (बेशरम), अकाव, इमली आदि पेड़ों की लकड़ी होती है।

गाँव के युवकों की टोली जब खंभे पर बँधे गुड़ को निकालने जाती है तब ये महिलाएँ इनकी खासी पिटाई करती हैं। युवक अपने आपको बचाने के लिए हाथ में लकड़ी की गेंडी लिए हुए रहते हैं। महिलाएँ पिटाई करती रहती हैं और पुरुष खुद को बचाते हुए गुड़ की पोटली नीचे उतारने की कोशिश में जुटे रहते हैं।

यह प्रकिया करीब सात बार दोहराई जाती है। सातों बार महिलाएँ युवकों की धुनाई करती हैं। बाद में युवकों की टोली खंभे को उखाड़ने जाती है तब भी उन्हें मार खाना पड़ती है। फिर गड्ढे को ढँकते समय भी यही रस्म दोहराई जाती है। रस्म समाप्ति के बाद महिला-पुरुष सामूहिक रूप से नाच-गाना करते हैं और महिलाएँ गणगौर माता से अपना सुहाग अक्षत रखने की प्रार्थना करती हैं। फिर माता की मूर्ति को घर-घर घुमाकर गोद भराई की रस्म निभाई जाती है।

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यहाँ के लोगों का मानना है कि सालभर पुरुष महिलाओं को प्रताड़ित करते हैं। उसके बाद भी महिलाएँ अपने सुहाग की रक्षा के लिए गणगौर पूजन करती हैं, इसलिए इस दिन गाँव के पुरुष पश्चाताप स्वरूप महिलाओं के हाथों से पिटते हैं। महिलाएँ भी इस मौके का फायदा उठाने से नहीं चूकतीं और हँसी-ठिठौली के बीच पुरुषों की खासी धुनाई करती हैं।

गणगौर माता को खुश करने के लिए किए जाने वाले इस आयोजन में आसपास के गाँवों के कई लोग शरीक होते हैं। गाँव के पुरुषों का मानना है यह रस्म हमें याद दिलाती है कि महिलाएँ भी देवी हैं और उन पर अत्याचार करके हम अपना ही नुकसान कर रहे हैं। इसलिए अपनी गलतियों पर स्वयं को सजा देने के लिए हम इस रिवाज को निभाते हैं। आप इस रस्म के बारे में क्या सोचते हैं, हमें बताइएगा।