महाकाल की नगरिया उज्जैन

- श्रुति अग्रवाल

उज्जैन, विक्रमादित्य की अवंतिका जिसकी रक्षा कालों के काल महाकाल करते हैं। इस नगर को मध्यप्रदेश की धार्मिक राजधानी की उपाधि प्राप्त है। शहर की हर गली, हर मोड़, चौराहे पर एक सुंदर मंदिर नजर आता है। उज्जैन को प्राचीनकाल में अंवति, अवंतिका, उज्जयिनी, विशाला, नंदनी, अमरावती, कनकश्रृंगा, पद्मावती, प्रतिकल्पा, चूड़ामणि आदि नामों से जाना जाता था।

उज्जैन मंदिरों के अलावा सम्राट विक्रमादित्य (जिनके नाम से विक्रम संवत चलाया गया) और महाकवि कालिदास के कारण ख्यात है। विश्व प्रसिद्ध नाटककार और कालिदास ने अपने जीवन के पचास साल यहीं व्यतीत किए थे। इस दौरान उन्होंने अनेक कालजयी रचनाओं का सृजन किया।

उज्जैन में पवित्र नदी शिप्रा बहती है। शिप्रा का अर्थ होता है धीमा वेग और करधनी। इसी नदी के तट पर हर बारह साल में एक बार सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन किया जाता है

देखा जाए तो भारत का हृदय स्थल है मध्यप्रदेश और मध्यप्रदेश के बीचोबीच बसा है उज्जैन। अवंतिकापुरी अर्थात उज्जैन का इतिहास पाँच हजार साल से भी अधिक पुराना है। ईसा पूर्व पाँचवीं-छठी शताब्दी में सोलह जनपदों या राष्ट्रों में से एक अवंति जनपद का उल्लेख है। कालगणना के क्षेत्र में उज्जैन नगर का योगदान अविस्मरणीय है। स्टैण्डर्ड टाइम के लिए आज जो महत्ता ग्रीनविच की है, वही कभी उज्जैन की थी

धर्म और कर्म के इस नगर के प्रमुख आकर्षणः-

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महाकाल मंदिर : शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है महाकाल मंदिर। शिवपुराण में वर्णित कथा के अनुसार दूषण नामक दैत्य के अत्याचार से जब उज्जयिनी के निवासी त्रस्त हो गए तो उन्होंने अपनी रक्षा के लिए शिव की आराधना की। आराधना से प्रसन्न होकर शिवजी ज्योति के रूप में प्रकट हुए। दैत्य का संहार किया और भक्तों के आग्रह पर लिंग के रूप में उज्जयिनी में प्रतिष्ठित हो गए

महाकाल का शिवलिंग दुनिया का एकमात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग है। तंत्र की दृष्टि से इसे बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। वर्तमान मंदिर मराठाकालीन माना जाता है। इसका जीर्णोद्धार आज से करीब 250 साल पूर्व सिंधिया राजघराने के दीवान बाबा रामचंद्र शैणवी ने करवाया था। महाकाल शिवलिंग दुनिया का एकमात्र शिवलिंग है, जहाँ भस्म आरती की जाती है।

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भस्म आरती के दौरान शिवजी को गाय के गोबर के कंडों से बनी भस्म से सजाया जाता है। किंवदंती है कि पहले-पहल यहाँ मुर्दे की भस्म से आरती की जाती थी, लेकिन बाद में यहाँ गोबर के कंडे की राख का उपयोग किया जाने लगा। महाकाल मंदिर में शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। सावन में यहाँ खासतौर पर श्रावण महोत्सव मनाया जाता है, जिसमें पं. जसराज से लेकर बिरजू महाराज जैसे ख्यातिमान कलाकार भाग लेते हैं।

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काल भैरव मंदिर : आश्चर्य और आस्था का अद्भुत सम्मिश्रण है काल भैरव मंदिर। यहाँ भैरव बाबा की मूर्ति मदिरा पीती है। इसे लेकर कई जाँचें हो चुकी हैं, लेकिन किसी भी तरह से पता नहीं चल सका कि मदिरा आखिर जाती कहाँ है। इस मंदिर का इतिहास भी हजारों साल पुराना है। वाम मार्गी तांत्रिकों का यह प्रमुख मंदिर माना जाता है। यहाँ कई तरह की तंत्र क्रिया भी की जाती हैं। उज्जैन आने वाले लोग महाकाल के बाद सीधे इस मंदिर का रुख करते हैं

मंगलनाथ मंदिर : स्कंधपुराण के अंवतिका खंड में इस मंदिर के जन्म से जुड़ी कथा है। कथा के अनुसार अंधाकासुर नामक दैत्य ने शिव से वरदाना पाया था कि उसकी रक्त की बूँदों से नित नए दैत्य जन्म लेते रहेंगे। इन दैत्यों के अत्याचार से त्रस्त जनता ने शिव की अराधना की। तब शिव शंभु और दैत्य अंधाकासुर के बीच घनघोर युद्ध हुआ।

ताकतवर दैत्य से लड़ते हुए शिवजी के पसीने की बूँदें धरती पर गिरीं, जिससे धरती दो भागों में फट गई और मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई। शिवजी के वारों से घायल दैत्य का सारा लहू इस नए ग्रह में मिल गया, जिससे मंगल ग्रह की भूमि लाल हो गई। दैत्य का विनाश हुआ और शिवजी ने इस नए ग्रह को पृथ्वी से अलग कर ब्रह्माण में फेंक दिया। इस दंतकथा के कारण जिन लोगों की पत्रिका में मंगल भारी होता है, वह उसे शांत करवाने के लिए इस मंदिर में दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। इस मंदिर में मंगल को शिव का ही स्वरूप दिया गया है।

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हरसिद्धि मंदिर : यह उज्जैन शक्तिपीठों में भी एक है। महाकाल वन में स्थित हरसिद्धि मंदिर की गणना 51 शक्ति पीठों में की जाती है। यहाँ देवी सती के दाहिने हाथ की कोहनी गिरी थी। यहीं कालिदास की आराध्य महाकाली देवी भी स्थित हैं। महाकाली मंदिर उज्जैन के गढ़ क्षेत्र में स्थित है।

भूखीमाता मंदिर : इस मंदिर से राजा विक्रमादित्य के राजा बनने की दंतकथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि भूखीमाता को रोज एक जवान लड़के की बलि दी जाती थी। जवान लड़के को उज्जैन का राजा घोषित किया जाता था, उसके बाद भूखी माता उसे खा जाती थी। एक बार एक दु:खी माँ का विलाप देख तरुण विक्रमादित्य ने उसे वचन दिया कि उसके बेटे की जगह वह नगर का राजा और भूखी माता का भोग बनेगा।

राजा बनते ही विक्रमादित्य ने पूरे शहर को सुगंधित भोजन से सजाने का आदेश दिया। जगह-जगह छप्पन भोज सजा दिए गए। भूखी माता की भूख विक्रमादित्य को अपना आहार बनाने से पहले ही खत्म हो गई और उन्होंने विक्रमादित्य को प्रजापालक चक्रवर्ती सम्राट होने का आशीर्वाद दिया। तब विक्रमादित्य ने उनके सम्मान में इस मंदिर का निर्माण करवाया था

कालिदेह महल : इस महल का निर्माण सिंधिया घराने ने करवाया था। दंतकथा है कि उज्जैन का केवल एक ही महाराजा है, वो है महाकाल। इसके अलावा किसी और राजा को उज्जैन में रात बिताने की अनुमति नहीं है। यदि वह उज्जैन में रात बिता ले तो जल्द ही उसका राज-पाठ नष्ट हो जाएगा। इस दंतकथा के चलते सिंध‍िया राजाओं ने अपने रुकने के लिए इस महल को बनवाया था। महल के पास सदियों पुराना सूर्य मंदिर है। महल के भग्नावशेष को देखकर लगता है कि शिप्रा के मुहाने बसा यह महल कभी बेहद भव्य रहा होगा


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सांदीपनि आश्रम : उज्जैन केवल धार्मिक राजधानी नहीं, बल्कि पुरातनकाल में शैक्षणिक राजधानी भी माना जाता था। द्वापर युग में यहाँ सांदीपनि नामक प्रमुख गुरुकुल था। ये वही गुरुकुल है, जहाँ श्रीकृष्ण और सुदामा ने विद्या अध्ययन किया था।

अन्य आकर्षण : इसके अलावा वेधशाला, भर्तृहरि की गुफा, चिंतामण गणेश मंदिर, शनि मंदिर, नवग्रह मंदिर, रामघाट, गोपाल मंदिर, चारधाम मंदिर, गढ़कालिका मंदिर, कोटेश्वर महादेव मंदिर आदि भी देखने योग्य हैं

कब जाएँ : यूँ तो सालभर यहाँ घूमने जाया जा सकता है, लेकिन शिवरात्रि और श्रावण मास में महाकाल के इस नगर का रूप निराला होता है। पूरा नगर शिवभक्ति में डूब जाता है। सावन के महीने में यहाँ श्रावण महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

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कैसे जाएँ : सड़क मार्ग से - उज्जैन-आगरा-कोटा-जयपुर मार्ग, उज्जैन-बदनावर-रतलाम-चित्तौड़ मार्ग, उज्जैन-मक्सी-शाजापुर-ग्वालियर-दिल्ली मार्ग, उज्जैन-देवास-भोपाल मार्ग, उज्जैन-धुलिया-नासिक-मुंबई मार्ग

रेल मार्ग : उज्जैन से मक्सी-भोपाल मार्ग (दिल्ली-नागपुर लाइन), उज्जैन-नागदा-रतलाम मार्ग (मुंबई-दिल्ली लाइन), उज्जैन-इंदौर मार्ग (मीटरगेज से खंडवा लाइन), उज्जैन-मक्सी-ग्वालियर-दिल्ली मार्ग

वायु मार्ग : उज्जैन से इंदौर एअरपोर्ट लगभग पैंसठ किलोमीटर दूर है

कहाँ ठहरें : उज्जैन में अच्छे होटलों से लेकर आम धर्मशाला तक सभी उपलब्ध हैं। इसके साथ-साथ महाकाल समिति की महाकाल और हरसिद्ध‍ि मंदिर के पास अच्छी धर्मशालाएँ हैं। इन धर्मशालाओं में एसी, नॉन एसी रूम और डारमेट्री उपलब्ध हैं। मंदिर प्रबंध समिति इनका अच्छा रखरखाव करती है

बजट : उज्जैन में आप कम से कम और ज्यादा से ज्यादा खर्चा कर सकते हैं। वैसे उज्जैन दर्शन के लिए पाँच हजार रुपए पर्याप्त होंगे।

टिप्सः-
1.महाकाल के दर्शन करते समय भीड़ का खास ध्यान रखें। शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन यहाँ लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। ऐसी भीड़ में नवजात और दुधमुँहे बच्चों को ले जाने से बचें। यदि बुजुर्ग और बच्चे साथ हों तो उनका खास ख्याल रखें।
2.यदि विशेष पूजा-अर्चना करवाना चाहते हों तो मंदिर प्रशासन द्वारा नियमित दरों पर रसीद कटवाने के बाद करवाएँ।
3.उज्जैन दर्शन के लिए आप टेम्पो जैसी आम सवारी काफी सस्ती दरों में बुक कर सकते हैं। ये आपको शहर के हर मंदिर के दर्शन आराम से करवा देंगे
4.यदि सिंहस्थ जैसे बड़े महोत्सव में भाग लेने जा रहे हैं, तो अपने साथियों का खास ध्यान रखें। प्रशासन द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करें और बाहर खाने-पीने से बचें।