Amarnath Yatra 2024: कश्मीर में वैसे तो 45 शिव धाम, 60 विष्णु धाम, 3 ब्रह्मा धाम, 22 शक्ति धाम, 700 नाग धाम तथा असंख्य तीर्थ थे, जिनमें से अधिकतर का मुगल काल में अस्तित्व मिटा दिया गया। फिर भारत पाकिस्तान के युद्ध में पाकिस्तान द्वारा अधिकृत किए गए कश्मीर के सभी तीर्थों को नष्ट कर दिया गया, जो सभी शिव से जुड़े थे। इन सभी में अमरनाथ का अधिक महत्व है। यह गुफा तो लाखों वर्ष पुरानी है परंतु यहां पर भगवान शिव ने माता पार्वती को अमर होने के सूत्र बताए थे जिसके चलते इसका नाम अमरनाथ पड़ा।
कैसे बनता है शिवलिंग : बहुत से लोग मानते हैं कि यह शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है। अर्थात गुफा में एक-एक बूंद पानी नीचे सेंटर में गिरता है और वही पानी धीरे-धीरे बर्फ के रूप में बदल जाता है। लेकिन अब सवाल उठता है कि गर्मी में तो बर्फ पिघलना शुरू होती है तब फिर गर्मी में कैसे बनता है यह हिमलिंग?ALSO READ: Amaranth Yatra : ONGC ने बनाए 100 बेड वाले 2 अस्पताल, अमरनाथ तीर्थयात्रियों को मिलेंगी ये सुविधाएं...
अकबर के इतिहासकार अबुल फजल (16वीं शताब्दी) ने आइना-ए-अकबरी में उल्लेख किया है कि अमरनाथ एक पवित्र तीर्थस्थल है। गुफा में बर्फ का एक बुलबुला बनता है। जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है।
चमत्कार या वास्तु शास्त्र का उदाहरण : क्या यह चमत्कार या वास्तुशास्त्र का एक उदाहरण नहीं है कि चंद्र की कलाओं के साथ हिमलिंग बढ़ता है और उसी के साथ घटकर लुप्त हो जाता है? चंद्र का संबंध शिव से माना गया है। ऐसा क्या है कि चंद्र का असर इस हिमलिंग पर ही गिरता है अन्य गुफाएं भी हैं जहां बूंद-बूंद पानी गिरता है लेकिन वे सभी हिमलिंग का रूप क्यों नहीं ले पाते हैं?
वैज्ञानिक कारण : ऑक्सफोर्ड में भारतीय इतिहास के लेखक विसेंट ए. स्मिथ ने बरनियर की पुस्तक के दूसरे संस्करण का सम्पादन करते समय टिप्पणी की थी कि अमरनाथ गुफा आश्चर्यजनक जमाव से परिपूर्ण है जहां छत से पानी बूंद-बूंद करके गिरता रहता है और जमकर बर्फ के खंड का रूप ले लेता है।
बहुत से लोग मानते हैं कि इस शिवलिंग का निर्माण गुफा की छत से पानी की बूंदों के टपकने से होता है। यह बूंदे नीचे गिरते ही बर्फ का रूप लेकर ठोस हो जाती है। यही बर्फ एक विशाल लगभग 12 से 18 फीट तक ऊंचे शिवलिंग का रूप ले लेता है। कभी कभी यह 22 फीट तक होती है।ALSO READ: बम-बम भोले के नारों के साथ अमरनाथ यात्रा शुरू, जम्मू से पहला जत्था रवाना
हालांकि वैज्ञानिक मानते हैं कि जिन प्राकृतिक स्थितियों में इस शिवलिंग का निर्माण होता है वह विज्ञान के तथ्यों से विपरीत है। यही बात सबसे ज्यादा अचंभित करती है। विज्ञान के अनुसार बर्फ को जमने के लिए करीब शून्य डिग्री तापमान जरूरी है। किंतु अमरनाथ यात्रा हर साल जून-जुलाई में शुरू होती है। तब इतना कम तापमान संभव नहीं होता।
हालांकि कुछ वैज्ञानिक तर्क देते हैं कि इस गुफा में हवा का घुमाव ही कुछ ऐसा है कि यहां हर साल शरद ऋतु में प्राकृतिक रूप से विशाल शिवलिंग बन जाता है। यही कारण है कि यह बाकी स्थानों की बर्फ पिघल जाने पर भी अपना अस्तित्व बनाए रखता है।
इस बारे में विज्ञान के तर्क है कि अमरनाथ गुफा के आस-पास और उसकी दीवारों में मौजूद दरारे या छोटे-छोटे छिद्रों में से शीतल हवा की आवाजाही हो सकती है। इससे गुफा में और उसके आस-पास बर्फ जमकर शिवलिंग का आकार ले लेती है। किंतु इस तथ्य की कोई पुष्टि नहीं हुई है क्योंकि यह दोनों ही बातें तर्क पर आधारित है।
amarnath yatra
धार्मिक मान्यता : धर्म में आस्था रखने वालों का मानते हैं कि यदि यही नियम शिवलिंग बनने का है तो संपूर्ण क्षेत्र में और भी गुफाएं हैं जहां बूंद-बूंद पानी टपकता है वहां क्यों नहीं बनता है हिमलिंग? ऐसा होने पर बहुत से शिवलिंग इस प्रकार बनने चाहिए। कई गुफाओं में शिवलिंग बनता भी है तो वह ठोस बर्फ का नहीं बनता है वह थोड़े में ही बिखर जाता है।
दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि इस गुफा में और शिवलिंग के आस-पास मीलों तक सर्वत्र कच्ची बर्फ पाई जाती है, जो छूने पर बिखर जाती है लेकिन यह किसी चमत्कार से कम नहीं है कि सिर्फ हिम शिवलिंग का निर्माण पक्की बर्फ से होता है। दूसरी सबसे बड़ी बात की इसकी ऊंचाई चंद्रमा की कलाओं के साथ घटती-बढ़ती है।
आषाढ़ माह में ही क्यों होती है अमरनाथ यात्रा की शुरुआत?
चंद्रकला की बात करें तो ऐसा ग्रंथों में लिखा मिलता है कि भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को श्री अमरनाथ की यात्रा को विशेष महत्व मिला। रक्षा बंधन की पूर्णिमा के दिन ही छड़ी मुबारक भी गुफा में बने हिमशिवलिंग के पास स्थापित कर दी जाती है।
हिन्दुओं का दायित्व : हिमलिंग और अमरनाथ की प्रकृति की रक्षा करना जरूरी है। कुछ वर्षों से बाबा अमरनाथ गुफा के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है जिसके चलते वहां मानव की गतिविधियों से गर्मी उत्पन्न हो रही है। कुछ श्रद्धालु अब वहां धूप और दीप भी जलाने लगे हैं जो कि हिमलिंग और गुफा के प्राकृतिक अस्तित्व के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। शिवलिंग को छूकर, धूप, दीपक जलाकर अपनी श्रद्धा प्रगट करना गलत है। इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।ALSO READ: Amarnath Yatra : अमरनाथ यात्रा की प्रथम पूजा गुफा में संपन्न, उपराज्यपाल सिन्हा ने दिया यात्रा का न्योता