महाभारत के कर्ण की नगरी करनावद का प्राचीन कर्णेश्वर मंदिर

मालवांचल में पांडव और कौरवों ने अनेक मंदिर बनाएं थे जिनमें से एक है सेंधल नदी के किनारे बसा यह कर्णेश्वर महादेव का मंदिर। करनावद (कर्णावत) नगर के राजा कर्ण यहां बैठकर ग्रामवासियों को दान दिया करते थे इस कारण इस मंदिर का नाम कर्णेश्वर मंदिर पड़ा।

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मालवा और निमाड़ अंचल में कौरवों द्वारा बनाए गए अनेकों मंदिर में से सिर्फ पांच ही मंदिर को प्रमुख माना गया हैं जिनमें क्रमश: ओंमकारेश्वर में ममलेश्वर, उज्जैन में महांकालेश्वर, नेमावर में सिद्धेश्वर, बिजवाड़ में बिजेश्वर और करनावद में कर्णेश्वर मंदिर। इन पांचों मंदिर के संबंध में किंवदंति हैं कि पांडवों ने उक्त पांचों मंदिर को एक ही रात में पूर्वमुखी से पश्चिम मुखी कर दिया गया था।
 
कर्णेश्वर महादेव मंदिर के पूजारी हेमंत दुबे ने कहा कि ऐसी किंवदंती है कि वनवास या अज्ञातवास के दौरान माता कुंती रेत के शिवलिंग बनाकर शिवजी की पूजा किया करती थी तब पांडवों ने पूछा कि आप किसी मंदिर में जाकर क्यों नहीं पूजा करती? कुंती ने कहा कि यहां जितने भी मंदिर हैं वे सारे कौरवों द्वारा बनाए गए है जहां हमें जाने की अनुमति नहीं है। इसलिए रेत के शिवलिंग बनाकर ही पूजा करनी होगी।
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कुंती का उक्त उत्तर सुनकर पांडवों को चिंता हो चली और फिर उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से उक्त पांच मंदिर के मुख को बदल दिया गया तत्पश्चात कुंती से कहा की अब आप यहां पूजा-अर्चना कर सकती हैं क्योंकि यह मंदिर हमने ही बनाया है।
 
कर्णेश्वर मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। बताया जाता हैं कि इस मंदिर में स्थित जो गुफाएं हैं वे उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के अलावा अन्य तीर्थ स्थानों तक अंदर ही अंदर निकलती है। गांव के कुछ लोगों द्वारा उक्त गुफाओं को बंद कर दिया गया है ताकि वह सुरक्षित रहे।
 
यहां प्रतिवर्ष श्रावण मास में उत्सवों का आयोजन होता है और बाबा कर्णेश्वर महादेव की झांकियां निकलती हैं।
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कैसे पहुंचे:-
वायु मार्ग : कर्णावत स्थल के सबसे नजदीकी इंदौर का एयरपोर्ट है।
अन्य साधन : इंदौर से रेल या सड़क मार्ग से 30 किलोमिटर पर स्थित जिला देवास पहुंचकर बागली-खातेगांव वाली बस में बैठकर करनावद जाया जा सकता है।

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