तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पहले देवी बगलामुखी को प्रसन्न करना पड़ता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार वैशाख शुक्ल अष्टमी को मां बगलामुखी की जयंती मनाई जाती है। भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा में हैं।
बगलामुखी जयंती का महत्व
वैसाख माह को पवित्र और शुद्ध मास माना जाता है। इस माह में सारे शुभ काम किए जाते हैं। यह इस मास की विषेषता है कि शुक्ल पक्ष के द्वितीया को परशुराम जयंती, तृतीया को अक्षय तृतीया, त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन हुआ था। चतुर्थी को गणेश चतुर्थी, पंचमी को आदि शंकराचार्य जयंती, षष्ठी को रामानुचार्य जयंती, सप्तमी को गंगा सप्तमी, अष्टमी को बगलामुखी जयंती, नवमी को जानकी जयंती, त्रयोदशी को नरसिंह जयंती और पूर्णिमा को भगवान बुद्ध की जयंती होती है।
इस दिन व्रत एवं पूजा उपासना की जाती है साधक को माता बगलामुखी की निमित्त पूजा अर्चना एवं व्रत करना चाहिए। बगलामुखी जयंती पर्व देश भर में हर्षोल्लास व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर जगह-जगह अनुष्ठान के साथ भजन संध्या एवं विश्व कल्याणार्थ महायज्ञ का आयोजन किया जाता है तथा महोत्सव के दिन शत्रु नाशिनी बगलामुखी माता का विशेष पूजन किया जाता है और रातभर भगवती जागरण होता है।
कौन है बगलामुखी मां
मां बगलामुखी जी आठवी महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए, हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं।
मां बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। मां बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए।