कब व कैसे होता है अधिक मास, जानिए विशेष जानकारी

अधिक मास में क्यों करें उपासना, जानिए महत्व
 
शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक तीन वर्ष के बाद पुरुषोत्तम मास आता है। इसे अधिक मास भी कहा जाता है। यह माह अधिक महत्व का माना गया है। इस मास के दौरान जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। इस मास में श्रीकृष्‍ण, श्रीमद्‍भगवतगीता, श्रीराम कथा वाचन और विष्‍णु भगवान की उपासना की जा‍ती है। इस माह उपासना करने का अपना अलग ही महत्व है। वर्ष 2020 में अधिक मास 18 सितंबर से शुरू होकर 16 अक्टूबर 2020 तक जारी रहेगा। 
 
पुरुषोत्तम मास में कथा पढ़ने, सुनने से भी बहुत लाभ प्राप्त होता है। इस मास में जमीन पर शयन, एक ही समय भोजन करने से अनंत फल प्राप्त होते हैं। सूर्य की बारह संक्रांति के आधार पर ही वर्ष में 12 माह होते हैं। पंचांग के अनुसार सारे तिथि-वार, योग-करण, नक्षत्र के अलावा सभी मास के कोई न कोई देवता स्वामी है, किंतु पुरुषोत्तम मास का कोई स्वामी न होने के कारण सभी मंगल कार्य, शुभ और पितृ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
 
पुराणे शास्त्रों में बताया गया है कि यह माह व्रत-उपवास, दान-पूजा, यज्ञ-हवन और ध्यान करने से मनुष्य के सारे पाप कर्मों का क्षय होकर उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस माह आपके द्वारा दान दिया गया एक रुपया भी आपको सौ गुना फल देता है। इसलिए अधिक मास के महत्व को ध्यान में रखकर इस माह दान-पुण्य देने का बहुत महत्व है। इस माह भागवत कथा, श्रीराम कथा श्रवण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। धार्मिक तीर्थ स्थलों पर स्नान करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति और अनंत पुण्यों की प्राप्ति मिलती है।
 
पुरुषोत्तम मास का अर्थ जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास कहलाता होता है। इनमें खास तौर पर सर्व मांगलिक कार्य वर्जित माने गए है, लेकिन यह माह धर्म-कर्म के कार्य करने में बहुत फलदायी है। इस मास में किए गए धार्मिक आयोजन पुण्य फलदायी होने के साथ ही ये आपको दूसरे माहों की अपेक्षा करोड़ गुना अधिक फल देने वाले माने गए हैं। 
 
पुरुषोत्तम मास में सभी नियम अपने सामर्थ्य अनुसार करना चाहिए। जितना हो सके उतना संयम अर्थात ब्रह्मचर्य का पालन, फलों का भक्षण, शुद्धता, पवित्रता, ईश्वर आराधना, एकासना, देवदर्शन, तीर्थयात्रा आदि अवश्य करना चाहिए। 
 
यदि पूरे मास यह नहीं हो सके तो एक पक्ष में अवश्य करना चाहिए। यदि उसमें भी असमर्थ हो तो चतुर्थी, अष्टमी, एकादशी, प्रदोष, पूर्णिमा, अमावस्या को अवश्य देव कर्म करें। इन तिथियों पर भी न कर पाएं तो एकादशी, पूर्णिमा को परिवार सहित कोई भी शुभ काम अवश्य करें। 
 
अधिक मास भगवान को प्रिय होने के कारण उन्होंने इसे अपना नाम पुरुषोत्तम दिया इस कारण से इसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। पुरुषोत्तम मास में दीपदान, वस्त्र एवं श्रीमद्भागवत कथा ग्रंथ दान का विशेष महत्व है। इस मास में दीपदान करने से धन-वैभव में वृद्धि होने के साथ पुण्‍य लाभ भी देता है और पुण्यों का संचय भी होता है।

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