माता पार्वती जब शिशु गणेश को छोड़ आईं जंगल में, पढ़िए पौराणिक कथा

कहते हैं कि एक घने जंगल में शिशु गणेश को माता पार्वती छोड़कर चली गई। उस जंगल में हिंसक जीव ही घूमते रहते थे। वहां कभी कभार ऋषि मुनि भी उस जंगल से गुजरते थे। उस भयानक जंगल में एक सियार ने उस शिशु को देखा और वह उसके पास जाने लगा।
 
तभी उसी समय ही वहां से ऋषि वेद व्यास के पिता पराशर मुनि गुजरे और उनकी दृष्टि उस अबोध बालक पर पड़ी और उन्होंने देखा की एक सियार भी उस शिशु की ओर धीरे-धीरे आ रहा है। पहले तो पराशर मुनि ने सोच कि कहीं यह इंद्र का कोई खेल या माया तो नहीं जो मेरा तप भंग करना चाहता हो?
 
यह सोचते हुए महर्षि पराशर तेजी से शिशु की ओर बढ़े और यह देखकर वह सियार अपनी जगह पर ही रुक गया और फिर चुपचाप ही वन में कहीं गुम हो गया। महर्षि पराशर ने उस बालक को ध्यान देखा। उसकी चार भुजाएं थीं। रक्त वर्ण और गजवदन था। सुंदर वस्त्र पहन रखे थे। तब उन्होंने उसके छोटे छोटे चरणों को देखा तो उस पर ध्वज, अंकुश और कमल की रेखाएं स्पष्ट नजर आ रही थी।
 
यह देखकर महर्षि के शरीर में रोमांच हो आया और वे समझ गए कि यह कोई साधारण बालक नहीं बल्की स्वयं प्रभु थे। तब उन्होंने शिशु के चरणों में अपना मस्तक रख दिया और वे खुद को भाग्यशाली समझने लगे। वे उस शिशु को लेकर अपने आश्रम चल पड़े।
 
उनकी पत्नी वत्सला ने जब महर्षि के हाथों में एक नन्हें बालक को देखा तो पूछा यह आपको कहां से मिला। महर्षि ने कहा कि यह जंगल के एक सरोवर के तट पर पड़ा था। लगता है कि को क्रूर हृदय अभागा इसे वहां छोड़ गया है। वत्सला शिशु को देखककर प्रसन्न हो गई। तब पराशर ने अपनी पत्नी को समझाया कि यह साक्षात त्रिलोकी नाथ है। यह हमारा उद्धार करने के लिए आया है। यह वचन सुनकर वत्सला रोमांचित हो गई। दोनों ने मिलकर गणेश का लालन पालन किया।
 
कहते हैं कि भगवान श्री गणपति ने कृत युग में कश्यप व अदिति के यहां श्रीअवतार महोत्कट विनायक नाम से जन्म लिया। इस अवतार में गणपति ने देवतान्तक व नरान्तक नामक राक्षसों का संहार कर धर्म की स्थापना की व अपने अवतार की समाप्ति की। 
 
त्रेता युग में गणपति ने उमा के गर्भ से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन जन्म लिया और उन्हें गुणेश नाम दिया गया। इस अवतार में गणपति ने सिंधु नामक दैत्य का विनाश किया व ब्रह्मदेव की कन्याएं, सिद्धि व रिद्धि से विवाह किया।
 
द्वापर युग में गणपति ने पुन: पार्वती के गर्भ से जन्म लिया व गणेश कहलाए। परंतु गणेश के जन्म के बाद किसी कारणवश पार्वती ने उन्हें जंगल में छोड़ दिया, जहां पर पराशर मुनि ने उनका पालन-पोषण किया। इन्ही गणेश ने ही ऋषि वेद व्यास के कहने पर महाभारत लिखी थी।
 
इस अवतार में गणेश ने सिंदुरासुर का वध कर उसके द्वारा कैद किए अनेक राजाओं व वीरों को मुक्त कराया था। इसी अवतार में गणेश ने वरेण्य नामक अपने भक्त को गणेश गीता के रूप में शाश्वत तत्व ज्ञान का उपदेश दिया। ऐसा भी कहा जाता है कि वे महिष्मति वरेण्य वरेण्य के पुत्र थे। कुरुप होने के कारण उन्हें जंगल में छोड़ दिया गया था।
 
साभार : गणेश पुराण

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