पूर्वकाल में पार्वती देवी को देवताओं ने अमृत से तैयार किया हुआ एक दिव्य मोदक दिया। मोदक देखकर दोनों बालक (कार्तिकेय तथा गणेश) माता से मांगने लगे। तब माता ने मोदक के महत्व का वर्णन किया कि इस मोदक की गंध से ही अमरता प्राप्त होती है। इसे सूंघने और खाने वाला सभी शास्त्रों का ज्ञाता, सभी तंत्रों में प्रवीण, सभी कलाओं का जानकार और सर्वज्ञ हो जाता है।
यह देख माता पार्वतीजी ने कहा कि समस्त तीर्थों में किया हुआ स्नान, सम्पूर्ण देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब प्रकार के व्रत, मन्त्र, योग और संयम का पालन- ये सभी साधन माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं हो सकते।