बहुत दिन व्यतीत होने के बाद एक दिन भगवान विष्णु नारद मुनि को साथ लेकर चल दिए। रास्ते में एक जगह एक वृक्ष के नीचे विष्णु ने रुककर कहा, नारदजी थोड़ा पानी लेकर लाओ, प्यास लगी है।
नारद कमंडल लेकर चल दिए। थोड़ा आगे चलने पर उन्हें नींद सताने लगी तो वे खजूर के झुरमुट के पास झपकी लेने के इरादे से लेट गए। लेकिन उनको गहरी नींद आ गई और इतनी गहरी कि वे सपना देखने लगे। सपने में देखा कि वह किसी वनवासी के दरवाजे पर कमंडल लेकर पहुंचे हैं। द्वार खटखटाया, तो एक सुंदर युवती को द्वार पर देखकर ठगे से रह गए।
वह युवती इतनी सुंदर थी कि नारद सबकुछ भूलकर उससे बातें करने लगे। दोनों के भीतर अनुराग की कोंपलें फूटने लगी। इसी बीच नारद ने अपना परिचय देकर लगे हाथ विवाह का प्रस्ताव रख दिया। युवती और उसका परिवार भी राजी हो गया और तुरंत विवाह हो गया। नारद सुंदर पत्नी के साथ बड़े आनंदपूर्वक दिन बिताने लगे। यथा समय उनके तीन पुत्र भी हो गए।
तभी एक दिन भयंकर बारिश हुई। घर के पास बहने वाली नदी में बाढ़ आ गई। नारद अपनी पत्नी और तीन पुत्रों के साथ बाढ़ से बचने के लिए भागे लेकिन पीठ और कंधे पर लदे हुए तीनों बच्चे उस बाढ़ में बह गए। देखते ही देखते पत्नी भी बाढ़ में बह गई। नारद किसी तरह खुद को बचाते हुए किनारे पर निकल तो आए लेकिन किनारे बैठकर परिवार को खोने के दुख के चलते फूट-फूटकर रोने लगे।
दुख में रोना इतना गहरा रहा कि सपने से वे हकीकत में भी रोने लगे। वह रोना इतना गहन था कि सोते-सोते उनके मुंह से रोने की आवाज निकल रही थी। इसी दौरान विष्णु भगवान नारद को ढूंढते हुए खजूर के झुरमुट के पास पहुंचे। उन्होंने नारद को सोते से जगाया, आंसू पोंछे और रुदन रुकवाया। नारद हड़बड़ाकर बैठ गए। कुछ देर तक तो उन्हें संपट नहीं पड़ी की ये सपना है या हकीकत।
तब भगवान ने पूछा- तुम हमारे लिए पानी लाने गए थे, क्या हुआ?
कुछ देर में नारद को भी समझ में आ गया कि यह सपना था। तब उन्होंने सपने में परिवार बसने और बाढ़ में बहने के दृश्य में समय चले जाने के लिए भगवान से क्षमा मांगी। उन्होंने देखा कि उनकी वह दशा देख विष्णु मुस्करा रहे हैं। तब धीरे से विष्णुजी ने कहा कि अब तो तुम्हें तुम्हारे सवालों का जवाब मिल गया होगा?