इन्द्र ने अपने धन-वैभव के अभिमान में उस माला का तिरस्कार करते हुए उसे अपने हाथी ऐरावत के गले में पहना दिया और ऐरावत ने उस माला को अपनी सूंड से क्षत-विक्षत कर दिया। आदर व प्रेम से दी हुई अपनी भेंट की यह दुर्दशा देखकर ऋषि दुर्वासा अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने इन्द्र को श्राप दे दिया कि जिस धन समृद्धि के बल पर तुमने मेरी इस भेंट का अनादर किया है आज से तुम उस लक्ष्मी से विहीन हो जाओगे।