अर्थव्यवस्था 2010 : कम आया विदेशी निवेश

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010 (19:02 IST)
देश में इस साल यानी 2010 में पिछले साल की तुलना में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का प्रवाह घटा है। इसकी मुख्य वजह वैश्विक अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की धीमी गति तथा दुनिया भर की कंपनियों द्वारा जोखिम लेने या विस्तार करने की इच्छा में कमी है।

जनवरी से अक्टूबर, 2010 के दौरान देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह 17.37 अरब डॉलर का रहा है। पिछले साल इसी अवधि में देश में 23.8 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया था। यानी इस साल के पहले दस माह में देश में विदेशी निवेश का प्रवाह 27 फीसदी घटा है।

हालाँकि, देश में विदेशी निवेश कम आने के पीछे न तो अर्थव्यवस्था और न ही सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। विश्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट ‘विश्व निवेश और राजनीतिक जोखिम’ में विकासशील देशों में एफडीआई का प्रवाह घटने का उचित कारण बताया गया है। भारत इससे अलग नहीं हैं, हालाँकि देश की आर्थिक वृद्धि दर नौ प्रतिशत के आँकड़े की ओर अग्रसर है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2008 के वैश्विक आर्थिक और वित्तीय संकट से बहुराष्ट्रीय उपक्रम सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे। 2008 और 2009 में वैश्विक वृद्धि कम रहने से उनका मुनाफा प्रभावित हुआ है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार हुआ है, पर इसकी गति काफी धीमी और जोशरहित है, क्योंकि विकसित देशों में मंदी का असर काफी ज्यादा था। नीतिगत स्तर पर इस साल बहु ब्रांड रिटेल क्षेत्र को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोलने की माँग ने जोर पकड़ा है।

चूँकि अब भारतीय कंपनियाँ वैश्विक हो रही हैं, इसलिए एफडीआई सिर्फ इकतरफा नहीं है। आज की तारीख में भारत से दूसरे देशों में निवेश भी काफी महत्वपूर्ण हो गया है। भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा आँकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की अप्रैल से जून की अवधि में दूसरे देशों को भारतीय निवेश में 2.8 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है।

आर्थिक संकट की वजह से 2009 में विकासशील देशों का दूसरे देशों को निवेश घटा था। औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) ने रक्षा क्षेत्र में भी एफडीआई की सीमा बढ़ाने की इच्छा जताई है और इसके लिए इस नोडल एजेंसी ने परिचर्चा पत्र भी जारी किया है। हालाँकि, इसका विरोध खुद रक्षा मंत्रालय कर रहा है।

पूर्व की तरह मारिशस देश में एफडीआई का प्रमुख स्रोत रहा है। इसकी वजह मारिशस की भारत के साथ दोहरा कराधान बचाव संधि है। साल के दौरान व्यापक स्तर पर सिंगापुर, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की कंपनियों ने भारत में सबसे ज्यादा निवेश किया है। भारत का सेवा क्षेत्र (वित्तीय और गैर वित्तीय दोनों) भी विदेश कंपनियों को लुभाता रहा है। 2010-11 के पहले सात महीनों में इन क्षेत्रों में 10 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया है।

विदेश निवेश पाने के मामले में महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से और हरियाणा सबसे आगे रहे हैं। (भाषा)

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