रियो ओलंपिक में बेटियों ने बढ़ाया मान...

रियो ओलंपिक में आज पहले साक्षी मलिक और फिर पीवी सिंधु ने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन करते हुए भारत का मान बढ़ाया। साक्षी ने तड़के कांस्य पदक जीतकर देशवासियों को राखी का तोहफा दिया और फिर पीवी सिंधु ने बैडमिंटन में पदक पक्का कर खुशी को दोगुना कर दिया।

 
अभिनव बिंद्रा, साइना नेहवाल, जीतू राय समेत सभी दिग्गज जब पदक की दौड़ से बाहर हो गए तो देश में मायूसी-सी छा गई। ऐसा प्रतीत होने लगा था कि अब पदक तालिका में भारत के मेडलों की संख्या शायद शून्य से आगे नहीं बढ़ पाएगी। 
 
महीनों से तैयारी कर रहे खिलाड़ियों और सरकार से ओलंपिक में पदक की आस में टकटकी लगाए देख रहे करोड़ों भारतीय पूछना चाह रहे थे कि क्यों भारत यहां पदक नहीं जीत पा रहा है? सोशल मीडिया पर तो मानो इस पर बहस भी शुरू हो गई थी कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है?
 
आज सुबह जब लोग उठे तो उनके चेहरे की रंगत ही बदली हुई थी। राखी पर साक्षी मलिक ने एक बहन के रूप में देश का मान बढ़ाते हुए जीत का जो तोहफा दिया, वह नायाब था। उसमें मेहनत की खुशबू थी। साक्षी तो पहली बार ओलंपिक गई थी, उसके लिए सब कुछ नया था। इस जीत के बाद जब उसने कोच के कंधे पर सवार होकर मैदान में तिरंगा लहराया तो उसे पता चला कि उसने कितना बड़ा काम किया है। 
 
शाम को जब पीवी सिंधु अपने से ऊंची रैंक की जापानी खिलाड़ी के सामने मैदान में उतरींं, तो करोड़ों आंखें उम्मीद से भरी हुई थींं। लोगों को पदक तो दिख रहा था, पर वे शायद इस बात को भूल गए थे कि सिंधु पहली बार ओलंपिक खेल रही हैं। लंबी रैलियों से सिंधु ने जापानी खिलाड़ी को हराकर सवा सौ करोड़ भारतीयों की उम्मीदों का भार अब अपने ऊपर ले लिया है। देश अब उनसे स्वर्ण पदक की उम्मीद लगा बैठा है। 
 
अगर वे व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण जीतने में सफल होती हैं तो अभिनव बिंद्रा के बाद यह कारनामा करने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी होंगी। अभिनव ने ट्वीट कर सिंधु को उनके शानदार खेल के लिए बधाई दी है। उन्होंने कहा कि क्या खिलाड़ी है। मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं, आओ और इस क्लब में शामिल हो जाओ। तुम्हें इस बात का अंदाजा नहीं है कि क्लब कितना सूना पड़ा है।
 
अभिनव तुम्हारे साथ ही सारे देश को इंतजार है उस पल का, जब गोपीचंद की यह शिष्या गोल्ड मेडल जीतकर देश का मान बढ़ाएगी। साक्षी और सिंधु जैसी खिलाड़ियों पर देश को गर्व है। इन बेटियों ने अपने प्रेरक खेल से बता दिया कि जीत के लिए जज्बे और जुनून के साथ ही धैर्य भी बड़ा जरूरी है। साक्षी ने धैर्य के साथ आक्रामकता से पदक जीता और सिंधुु ने जापानी खिलाड़ी के धैर्य की जमकर परीक्षा ली और देश को वो दे दिया जिसकी हमें पिछले 12 दिनों से तलाश थी। शाबाश! सिंधु और साक्षी।

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