युसरा मर्दिनी जज्बे से जीती जंग

युसरा मर्दिनी 18-साल की ऐसी खिलाड़ी हैं जो रियो ओलंपिक में किसी देश की तरफ से नहीं भाग ले रहीं। वह 'रिफ्यूजी कैंप' की तरफ से भाग ले रही हैं। जी हां सही पढ़ा आपने। उनका अपना कोई घर है और नहीं कोई देश। 


 
 
सीरिया से पलायन : वह पहले सीरिया की निवासी थीं। उन्होंने युद्ध में अपना सबकुछ खो दिया। वह सीरिया से अपनी बहन के साथ भाग आईं। जैसे तेसे उन्होंने आतंकियों, पुलिस और आर्मी की आंखों से खुद को बचाया। दोनों दम्साकस, बैरूत, लेबनान और टर्की होती हुईं निकल भागीं। वे दोनों ग्रीस होते हुए जर्मनी पहुंचना चाहती थीं। 
 
20 लोगों की बचाई जान : ग्रीस में एक किनारे तक पहुंचने के लिए उन्हें एक छोटी नाव का सहारा लेना पड़ा। इस नाव पर सिर्फ 6 लोग आ सकते थे परंतु करीब 20 लोग इस पर चढ़े हुए थे। उनका भाग्य खराब था कि नाव का इंजन भी चलना बंद हो गया। बोट पर सवार सिर्फ चार लोगों को तैरना आता था। युसरा, उसकी बहन और दो आदमी। 
 
इन चारों ने एक बेहद मुश्किलभरा फैसला किया। उन्होंने बोट को किनारे तक खींचकर लाने का फैसला किया। रात होने को थी और समुद्र में तुफान था। पानी भयंकर ठंडा था। युसरा की बहन और बाकी आदमी भी जल्दी ही बेहोश होने जैसे हो गए और उन्होंने बोट खींचने का फैसला बदल दिया परंतु युसरा ने खुद से कहा, "वह तैराक है और पानी में मर जाना गलत होगा। आखिर क्यों मैनें तैरना सीखा? अभी अच्छा समय तैरने के लिए हो ही नहीं सकता। मुझे इनकी जिंदगियां बचाने के लिए भी तैरना होगा।" 
 
युसरा ने बर्फ जैसे ठंडे पानी में तैराना जारी रखा। वह 3 घंटे तक तैरती रही और किनारे पर आ गई। उसने 20 जिंदगियां बचाईं परंतु उसकी मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई थीं। उसे जर्मनी पहुंचना था।  
 
आखिर में पहुंची जर्मनी : युसरा और बहन के पास गर्म कपड़े, जुते नहीं थे। दोनों ग्रीस, सर्बिया और हंग्री होती हुईं जर्मनी पहुंचीं। वह जर्मनी में रिफ्यूजी के तौर पर रह रही थीं। उसका तैरने के लिए जुनून खत्म नहीं हुआ। उसने एक लोकल से बात की जो मिस्त्र की भाषा और जर्मन बोल सकता था। इसके आदमी के माध्यम से वह लोकल स्वीमिंग क्लब में प्रवेश चाहती थी। जब कोच ने उसके तैरने की कला देखी तो वह न नहीं कर सका। 
 
रिफ्यूजी कैंप की सदस्य : युसरा अब रियो के ओलंपिक में भाग ले रही है। वह 10 सदस्यों वाले दल का हिस्सा है। यह दल 'रिफ्यूजी कैंप' के नाम से ओलंपिक झंडे ने नीचे भाग ले रहा है। सारी मुश्किलों से लड़ते हुए और मौत को सामने देखने के बाद भी इस 18 साल की लड़की ने अपना सपना नहीं छोड़ा। वह सभी के लिए प्रेरणा बन चुकी है। 
 
 

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