गैरों की बातों पर मुझे अपना ख्याल किया नहीं आता है
जिस बात पर छिड़ी थी जंग वो सवाल याद किया नहीं आता है
जब मेरा जीत जाना तय है तो भी इस बात पर मुझे ऐतबार किया नहीं आता है
किस उलझन में हूं गुम याद नहीं आता है
जब थोड़ी-सी है प्यास मेरी फिर भी समंदर किया नजर आता है
पाना है सब कुछ मगर दुनिया से छीनना क्यों नहीं आता है
यारों के चले जाने का रंज है मुझे पर बेमानी शर्तों पर जीना नहीं आता है
उसूलों पर जीना है मुझे अपने बस यही सवाल बार-बार याद आता है