प्रेम काव्य : रखना नहीं दिल से दूर

मैं भौंरा बन के गुनगुनाऊं
मैं आंखों में तेरी बस जाऊं


 
मैं गजरे का फूल बन जाऊं
रखना नहीं दिल से दूर
रखना नहीं दिल से दूर
 
मैं आंखों का नूर बन जाऊं
मैं गजल बनकर ओंठों पे आऊं 
मैं वीणा का तार बन जाऊं
हाथों का तेरे स्पंदन पाऊं
रखना नहीं दिल से दूर
रखना नहीं दिल से दूर
 
मैं फूल बनकर मुस्कराऊं
मैं नदिया की कल-कल बन जाऊं
मैं चांदनी बनकर खिलखिलाऊं
रखना नहीं दिल से दूर
रखना नहीं दिल से दूर
 
मैं बेला की खुशबू बन जाऊं
मैं सांसों में तेरी बस जाऊं
मैं कविता बोल बन जाऊं
रखना नहीं दिल से दूर
रखना नहीं दिल से दूर। 
 
 

वेबदुनिया पर पढ़ें