प्रेम में निवेदन, आज्ञा नहीं

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प्रेम की कई परिभाषाएँ है। हर व्यक्ति इसे अपने ढंग से परिभाषित कर इसमें अपनी खुशियाँ ढूँढ़ता है। प्रेम को यदि हम एक 'अहसास' कहें तो यह कुछ हद तक सही होगा। हकीकत में यह एक अहसास है, जो आपको भीतर तक हिलाकर रख देता है और कहीं न कहीं दिल के समंदर में उठती प्रेम की इन लहरों में व्यक्ति का अहंकार व अकड़ सब डूब जाते हैं। कुछ शेष रह जाता है तो वो है केवल सच्चा प्यार।

जब आप किसी से प्रेम करते हैं तो आप उसकी जात-पाँत, उम्र व अन्य बंधनों को नकार देते हैं क्योंकि प्रेम कभी सोच-सोचकर समझकर या व्यक्ति देखकर नहीं किया जाता है। यह तो बस स्वत: ही हो जाता है।

  इस पवित्र रिश्ते में हमेशा निवेदन का भाव होना चाहिए। अकड़, आज्ञा या अहम का नहीं। यदि ये भाव आपके मन में घर कर जाएँगे तो शायद आप जीवन में कभी भी सच्चा प्रेम प्राप्त नहीं कर पाएँगे। अपने प्यार को प्यार से सहेजकर सदा अपने पास रखो तो वो जीवनभर आपका साथ न      
यदि यह सोच-समझकर किया जाता तो शायद व्यक्ति को कभी अपने जीवनसाथी, परिवार, रिश्तेदार व सहकर्मी से असंतोष नहीं होता। प्रेम व्यक्ति को नहीं उसके दिल के भाव व विचारों का मुरीद होता है। तभी तो कहते हैं कि प्रेम अचानक हो जाता है।

इसका पता हमें तब चलता है जब हमारे व्यवहार में, हमारे विचार में, हमारे रहन-सहन में अचानक सकारात्मक परिवर्तन आने लगते हैं।

हमारा अहंकार कही खोकर हममें नम्रता का भाव आ जाता है, जब हम बेवजह क्रोध करने के बजाय मुस्कुराना सीख लेते हैं। यही तो जादू है प्रेम के नशे में जो एक कठोर व निर्दयी इंसान के मन को भी पिघलाकर उसे प्रेम करना सीखा देता है।

कुछ लोग प्रेम करके अहंकार करते हैं व जरा-जरा सी बात पर विवाद करके नासमझी में अपने प्रेमी को हमेशा के लिए खो देते हैं। उस वक्त उनके जीने की वजह उनके मरने का कारण बन जाती है। हमेशा याद रखें प्रेम प्राण व ऊर्जा का संचार करता है दुख व अवसाद का नहीं।

शायद इसीलिए कहते हैं कि इस पवित्र रिश्ते में हमेशा निवेदन का भाव होना चाहिए। अकड़, आज्ञा या अहम का नहीं। यदि ये भाव आपके मन में घर कर जाएँगे तो शायद आप जीवन में कभी भी सच्चा प्रेम प्राप्त नहीं कर पाएँगे। अपने प्यार को प्यार से सहेजकर सदा अपने पास रखो तो वो जीवनभर आपका साथ निभाएगा।

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