पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़िसा और पूर्वोत्तर राज्यों में दिवाली के पांच दिनी उत्सव के दौरान कालिका पूजा का प्रचलन है। कई जगहों पर नरक चतुर्दशी के दिन तो कुछ जगहों पर दीपावली के दिन कालिका पूजा का प्रचलन है। आखिर ये काली पूजा क्यों करते हैं?
1. पश्चिम बंगाल में दिवाली पर देवी काली की पूजा का ज्यादा महत्व है। दिवाली की मध्यरात्रि में लोग महाकाली की पूजा-अर्चना करते हैं। पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी पूजा दशहरे के 6 दिन बाद की जाती है जबकि दिवाली के दिन काली पूजा की जाती है। नरक चतुर्दशी पर ऐसी धार्मिक धारणा है कि सुबह जल्दी तेल से स्नान कर देवी काली की पूजा करते हैं और उन्हें कुमकुम लगाते हैं।
2. ओडिशा में पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन महानिशा और काली पूजा, तीसरे दिन लक्ष्मी पूजा, चौथे दिन गोवर्धन और अन्नकूट पूजा और 5वें दिन भाईदूज मनाया जाता है। यहां आद्य काली पूजा का खासा महत्व है।
3. बिहार और झारखंड में दिवाली के मौके पर होली जैसा माहौल हो जाता है। यहां बहुत धूमधाम से दीपावली का पर्व मनाया जाता है। यहां पारंपरिक गीत, नृत्य और पूजा का प्रचलन है। अधिकतर क्षेत्रों में काली पूजा का महत्व है। लोग खूब एक-दूसरे से गले मिलते हैं, मिठाइयां बांटते हैं, पटाखे छोड़ते हैं। धनतेरस के दिन यहां बाजार सज जाते हैं।
4. इसी तरह दीपावली के दिन असम, मणिपुर, नगालैंड, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल, सिक्किम और मिजोरम उत्तर-पूर्वी राज्यों में काली पूजा का खासा महत्व है। दीपावली की मध्य रात्रि तंत्र साधना के लिए सबसे उपर्युक्त मानी जाती है इसलिए तंत्र को मानने वाले इस दिन कई तरह की साधनाएं करते हैं। हालांकि इस दिन दीप जलाना, पारंपरिक व्यंजन बनाना, मिठाइयां खाना और पटाखे छोड़ने का प्रचलन भी है।
कैसे होती है काली पूजा?
दो तरीके से मां काली की पूजा की जाती है, एक सामान्य और दूसरी तंत्र पूजा। सामान्य पूजा कोई भी कर सकता है। माता काली की सामान्य पूजा में विशेष रूप से 108 गुड़हल के फूल, 108 बेलपत्र एवं माला, 108 मिट्टी के दीपक और 108 दुर्वा चढ़ाने की परंपरा है। साथ ही मौसमी फल, मिठाई, खिचड़ी, खीर, तली हुई सब्जी तथा अन्य व्यंजनों का भी भोग माता को चढ़ाया जाता है। पूजा की इस विधि में सुबह से उपवास रखकर रात्रि में भोग, होम-हवन व पुष्पांजलि आदि का समावेश होता है।