3.असंख्य परंपरा, व्रत, त्योहार और रीति-रिवाज धर्म का हिस्सा नहीं-
हिन्दुओं ने अपने त्योहारों को बदल कर गंदा कर दिया है। इसके अलावा कौन-सा त्योहार, व्रत या रिवाज हिन्दू धर्म का हिस्सा है और कौन-सा स्थानीय संस्कृति का यह जानना भी जरूरी हैं। ऐसी कई परंपराएं है जो कि हिन्दू त्योहारों में कुछ 100-200 सौ वर्षों में प्रचलन में आ गई है जो कि उक्त त्योहार का अपमान ही माना जाएगा। रिवाज की उत्पत्ति स्थानीय लोक कथाओं, संस्कृति, अंधविश्वास, रहन-सहन, खान-पान आदि के आधार पर होती है। बहुत से रिवाज ऐसे हैं जो हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार सही नहीं है, जैसे सती प्रथा, दहेज प्रथा, मूर्ति स्थापना और विसर्जन, माता की चौकी, अनावश्यक व्रत-उपवास और कथाएं, पशु बलि, जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, छुआछूत, ग्रह-नक्षत्र पूजा, मृतकों की पूजा, अधार्मिक तीर्थ-मंदिर, 16 संस्कारों को छोड़कर अन्य संस्कार आदि। यह लंबे काल और वंश परंपरा का परिणाम ही है कि वेदों को छोड़कर हिन्दू अब स्थानीय स्तर के त्योहार और विश्वासों को ज्यादा मानने लगा है। सभी में वह अपने मन से नियमों को चलाता है।