जिन राजाओं के पास चक्र नहीं होता था तो वे अपने पराक्रम के बल पर अश्वमेध या राजसूय यज्ञ करके यह घोषणा करते थे कि इस घोड़े को जो कोई भी रोकेगा उसे युद्ध करना होगा और जो नहीं रोकेगा उसका राज्य यज्ञकर्ता राजा के अधीन माना लिया जाएगा। जम्बूद्वीप और भारत खंड में ऐसे कई राजा हुए जिनके नाम के आगे 'चक्रवर्ती' लगाया जाता है, जैसे वैवस्वत मनु, मान्धाता, ययाति, प्रियव्रत, भरत, हरीशचन्द्र, सुदास, रावण, श्रीराम, राजा नहुष, युधिष्ठिर, महापद्म, विक्रमादित्य, सम्राट अशोक आदि। विश्व शासक को ही 'चक्रवर्ती' कहा जाता था लेकिन कालांतर में समस्त भारत को एक शासन सूत्र में बांधना ही चक्रवर्तियों का प्रमुख आदर्श बन गया था।