शहीद वीरांगना महारानी दुर्गावती ने दिया था अकबर को करारा जवाब

हमारे देश के ऐसे कई वीरों और वीरांगनाओं की दास्तान दबा दी गई जिन्होंने मुगल और अंग्रेजों से लड़कर विजयी प्राप्त की थी। उन्हीं में से एक थीं रानी दुर्गावती। दुर्गावती के वीरतापूर्ण चरित्र को भारतीय इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। सचमुच वह मां दुर्गा के समान थी। आओ जानते हैं उनके बारे में संक्षिप्त में।
 
 
1. वीरांगना महारानी दुर्गावती का जन्म 1524 में हुआ था। उनका राज्य गोंडवाना में था। महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से उनका विवाह हुआ था। दुर्भाग्यवश विवाह के 4 वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती का पुत्र नारायण 3 वर्ष का ही था अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था।
 
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अकबर के कडा मानिकपुर के सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां ने रानी दुर्गावती के विरुद्ध अकबर को उकसाया था। अकबर अन्य राजपूत घरानों की विधवाओं की तरह दुर्गावती को भी रनवासे की शोभा बनाना चाहता था। अकबर ने अपनी कामुक भोग-लिप्सा के लिए एक विधवा पर जुल्म किया। लेकिन धन्य है रानी दुर्गावती का पराक्रम कि उसने अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इनकार कर स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए युद्ध भूमि को चुना और अनेक बार शत्रुओं को पराजित करते हुए 1564 में बलिदान दे दिया। उनकी मृत्यु के पश्चात उनका देवर चन्द्रशाह शासक बना व उसने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली।
 
रानी रूपमती के प्यार में अंधे हुए स्त्री-लोलुप सूबेदार बाजबहादुर ने भी रानी दुर्गावती पर बुरी नजर डाली थी लेकिन उसको मुंह की खानी पड़ी। दूसरी बार के युद्ध में दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया। महारानी ने 16 वर्ष तक राज संभाला। इस दौरान उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं।

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