क्या प्राचीन भारत में विवाह के बाद संबंध बनाना अपराध था?
गुरुवार, 27 सितम्बर 2018 (16:18 IST)
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने व्यभिचार के लिए दंड के प्रावधान करने वाली धारा को सर्वसम्मति से असंवैधानिक घोषित कर दिया गया है। न्यायमूर्ति मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पीठ ने गुरुवार, 27 सितंबर 2018 को कहा कि व्यभिचार के संबंध में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है। इसका मतलब यह कि किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला (परस्त्री) से यौन संबंध बनाना अब अपराध नहीं होगा। इसी संदर्भ में प्राचीन भारत में विवाहेत्तर संबंध पर एक दृष्टि-
गुलामी के काल और वर्तमान भारत तक में सहवास पर बात करना बेशर्मी माना जाता रहा है जबकि हजार वर्ष से भी ज्यादा पुराने खजुराहो और कोणार्क के सूर्य मंदिर एवं अजंता और एलोरा की गुफाओं के मंदिर जब बनाए जा रहे थे तब किसी ने भी आपत्ति नहीं ली थी। इससे पूर्व भी भारत में विवाहेत्तर संबंधों को कभी बुरा नहीं माना गया था। ईसा से 4 सदी पूर्व लिखे गए आचार्य वात्स्यायन के 'कामसूत्र' और इससे पहले 'कामशास्त्र' की भारत में शिक्षा दी जाती थी। कहना चाहिए कि लगभग 13वीं सदी तक भारत में यौन संबंधों को लेकर खुला माहौल था।
खजुराहो के मंदिरों को देखने के बाद कोई भी यह निश्चित जान जाएगा कि भारत में यौन संबंधों को लेकर कितना खुलापन था। यहां की मूतियां यौन संबंध के प्रत्येक पोश्चर को दर्शाती हैं। यौन संबंध को खुलकर दर्शाने वालीं इन मूर्तियों को देखने के लिए आज के भारतीय लोग यहां अपने पूरे परिवार के साथ जाना पसंद नहीं करेंगे।
प्राचीन भारत और कहना चाहिए कि हिन्दू धर्म में सेक्स को जिंदगी का अहम हिस्सा माना गया है। प्राचीन भारत में नग्नता अश्लीलता नहीं होती थी। विवाहेत्तर स्त्री या पुरुष का किसी अन्य स्त्री या पुरुष के साथ संबंध बनाना अपराध नहीं होता था। प्राचीन भारत में महिलाओं को अपने तरीके से जीवन-यापन करने की संपूर्ण आजादी थी। उसकी निजता का पूर्णत: सम्मान किया जाता था। महिला को समाज की चाहत के हिसाब से सोचने के लिए नहीं कहा जाता था।
इसके कई उदाहरण दिए जा सकते हैं, जैसे महाभारत के आदिपर्व के अनुसार एक दिन राजा पांडु आखेट के लिए निकलते हैं। जंगल में दूर से देखने पर उनको एक हिरण दिखाई देता है। वे उसे एक तीर से मार देते हैं। वह हिरण एक ऋषि निकलते हैं, जो अपनी पत्नी के साथ मैथुनरत थे। वे ऋषि मरते वक्त पांडु को शाप देते हैं कि तुम भी मेरी तरह मरोगे, जब तुम मैथुनरत रहोगे। इस शाप के भय से पांडु अपना राज्य अपने भाई धृतराष्ट्र को सौंपकर अपनी पत्नियों कुंती और माद्री के साथ जंगल चले जाते हैं। जंगल में वे संन्यासियों का जीवन जीने लगते हैं।
लेकिन पांडु इस बात से दुखी रहते हैं कि उनकी कोई संतान नहीं है और वे कुंती को समझाने का प्रयत्न करते हैं कि उसे किसी ऋषि के साथ समागम करके संतान उत्पन्न करनी चाहिए। कुंती परपुरुष के साथ नहीं सोना चाहती तो पांडु उसे यह कथा सुनाते हैं कि प्राचीनकाल में स्त्रियां स्वतंत्र थीं और वे जिसके साथ चाहें, उसके साथ समागम कर सकती थीं। केवल ऋतुकाल में पत्नी केवल पति के साथ समागम कर सकती है अन्यथा वह स्वतंत्र है। यही धर्म था, जो नारियों का पक्ष करता था और सभी इसका पालन करते थे।
उल्लेखनीय है कि पति की अनुमति से प्राचीनकाल में स्त्रियां किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध बनाकर संतानोत्पत्ति करती थीं। इसे 'नियोग-प्रथा' कहते थे लेकिन इस प्रथा का उपरोक्त व्यभिचार या विवाहेत्तर संबंध से कोई संबंध नहीं था, क्योंकि नियोग उस स्थिति में किया जाता था जबकि पति संतान उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होता था और पति की अनुमति से ही पत्नी नियोग करती थी।
हालांकि कुंती और माद्री को पांडु एक कथा सुनाकर संतुष्ट करते हैं। कथा यह थी कि एक उद्दालक नाम के प्रसिद्ध मुनि थे जिनका श्वेतकेतु नाम का एक पुत्र था। एक बार जब श्वेतकेतु अपने माता-पिता के साथ बैठे थे, एक विप्र आया और श्वेतकेतु की मां का हाथ पकड़कर बोला, 'आओ चलें।' अपनी मां को इस तरह जाते हुए देखकर श्वेतकेतु बहुत क्रुद्ध हुए किंतु पिता ने उनको समझाया कि नियम के अनुसार स्त्रियां गायों की तरह स्वतंत्र हैं जिस किसी के भी साथ समागम करने के लिए।
इन्हीं श्वेतकेतु द्वारा फिर यह नियम बनाया गया कि स्त्रियों को पति के प्रति वफादार होना चाहिए और परपुरुष के साथ समागम करने का पाप भ्रूणहत्या की तरह होगा। श्वेतकेतु ने ही विवाहेत्तर संबंधों को व्यभिचार घोषित करके इस पर विराम लगाया था। लेकिन इसके बावजूद भारत में ऐसे कई समाज थे जिन्होंने इस पाबंदी को कभी नहीं माना और परंपरा से चली आ रही प्रथा को जारी रखा। बाद में सभ्यता के विकास के साथ सेक्स के संबंध में सामाजिक रीतियां विकसित हुईं और नैतिक मानदंड स्थापित हुए और फिर प्रथम क्रम के समाज ने खुद को बदलकर संयुक्त परिवार में ढाला। फिर भी प्राचीन भारत में यौन संबंध और विवाहेत्तर को कभी अपराध नहीं माना जाता था।
दो लोगों के बीच बनने वाला संबंध जिनका विवाह एक-दूसरे से नहीं हुआ है, उसे विवाहेत्तर संबंध कहते हैं। हालांकि प्राचीन भारत में ऐसे संबंध बनाने की आवश्यकता नहीं होती थी, क्योंकि कोई भी पुरुष एक से अधिक विवाह कर सकता था और कोई भी स्त्री अपने पति को छोड़कर अन्य किसी में मन नहीं रमाती थी। इसके कई कारण थे।
अंत में हिन्दू धर्म में विवाह एक संस्कार है। वैदिक नियमों व वचनों में यह स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि विवाह के बाद स्त्री या पुरुष को दूसरे पुरुष या स्त्री के बारे में सोचना भी अपराध है। हिन्दू धर्म और भारत के समाज और प्रथाओं में फर्क हो सकता है। धर्म के नियमों से अलग भी समाज में कई प्रथाएं या रिवाज होते हैं। भारत में आज भी ऐसी कई प्रथाएं प्रचलित हैं जिनका हिन्दू धर्म से कोई संबंध नहीं है।