सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, अग्निवंशी, ऋषिवंशी, नागवंशी, भौमवंशी आदि वंशों में बंटा हुआ है छत्रिय वंश। जहां तक गुर्जर समुदाय की बात हैं वे सभी सूर्यवंशी हैं। भारत में गुर्जर, जाट, पटेल, पाटिदार, मीणा, राजपूत, चौहान, प्रतिहार, सोलंकी, पाल, मराठा आदि सभी छत्रिय वंश से संबंध रखते हैं। गुर्जर और प्रतिहार को यह बात समझना चाहिए की वे दोनों ही मूलत: छत्रिय हैं।
माना जाता है कि गुर्जर संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ शत्रु विनाशक होता है। गुर्जर, गुज्जर, गूजर, गोजर, गुर्जर, गूर्जर और वीर गुर्जर नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन महाकवि राजशेखर ने गुर्जरों को रघुकुल-तिलक तथा रघुग्रामिणी कहा है। राजस्थान में गुर्जरों को सम्मान से 'मिहिर' बोलते हैं, जिसका अर्थ 'सूर्य' होता है। गुर्जरों का मूल स्थान गुजरात और राजस्थान माना गया है। इतिहासकार बताते हैं कि मुगल काल से पहले तक लगभग संपूर्ण राजस्थान तथा गुजरात, गुर्जरत्रा (गुर्जरों से रक्षित देश) या गुर्जर-भूमि के नाम से जाना जाता था।
गुर्जर अभिलेखों के अनुसार वे सूर्यवंशी और रघुवंशी हैं। 7वीं से 10वीं शताब्दी के गुर्जर शिलालेखों पर अंकीत सूर्यदेव की कलाकृतियां भी इनके सूर्यवंशी होने की पुष्टि करती करती है। कुछ इतिहासकार कुषाणों को भी गुर्जर मानते हैं। कनिष्क कुषाण राजा था जिसके शिलालेखों पर 'गुसुर' नाम अंकीत है जो गुर्जर की ओर ही इंगित करता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार गायत्री माता जो ब्रह्मा जी की अर्धांग्निी थी वह भी गुर्जर थी। नंद बाबा जो भगवान श्रीकृष्ण के पालक पोषक थे, वह भी गुर्जर ही थे।
हरियाणा के जिला सोनीपत में गन्नौर के पास गुर्जर खेड़ी गांव में भी गुर्जर प्रतिहार मूर्तिकला के सैकड़ों नमूने मिले हैं। गुर्जर खेड़ी गांव के पास से किसी जमाने में जमुना नदी गुजरती थी। गुर्जर खेड़ी के दूर-दूर तक फैले हुए खण्डहर इस बात की तसदीक करते हैं कि आज से आठ-नौ सौ साल पहले यहां पर कोई बहुत बड़ा शहर रहा होगा।
आर्यावर्त में गुर्जरों की संख्या सबसे ज्यादा थी। गुर्जर जाति के तीन भाग है पहला लोर गुर्जर दूसरा डाब गुर्जर तीसरा पित्ल्या गुर्जर। हिंदुओं की गुर्जर जाति में लगभग 1400 गौत्र है। मुगल काल में सबसे ज्यादा गुजरों ने मुगलों के विरुद्ध आवाज उठाई थी जिसका परिणाय यह भी हुआ कि गुर्जर जाति के लाखों लोगों को मजबूरन उस काल में धर्म परिवर्तन करना पड़ा। वर्तमान में भारतीय मुसलमानों में गुर्जर जाति के लोगों की संख्या ज्यादा है।
गुर्जर जाति एक परम पूज्य और वीर जाती है जिन्होंने हर काल में आक्रांताओं से हिंदुत्व की रक्षा की है। गुर्जर जाति के पूर्वज पहले गाय चराते थे। गुर्जर जाति में संवत् 968 में भगवान श्री देव महाराज का अवतार हुआ था। देव काल में माता गायत्री ने चेची गोत्र मैं अवतार लिया था। इस राजकाल में पन्ना धाय ने गुर्जरों का गौरव बढ़ाया था। कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज और पृथ्वी राज चौहान के पूर्वज भी गुर्जर थे। यह भी कहते हैं कि गुर्जर जाति में ही भामाशाह पैदा हुए थे जिन्होंने मेवाड़ की रक्षा के लिए अपना सम्पूर्ण धन दिया। 1857 की क्रांति में गुर्जरों की अहम् भूमिका रही थी।
इतिहासकारों में गुर्जरों की उत्पत्ति को लेकर मतभेद है। कुछ इन्हें हूणों का वंशज मानते हैं तो आर्यों की संतान। कुछ इतिहासकरों के अनुसार गुर्जर मध्य एशिया के कॉकेशस क्षेत्र (अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए आर्य योद्धा थे। यह वे आर्य थे जो कालांतर में अपनी मातृभूमि भारत को छोड़कर बाहर चले गए थे।
मुख्यत: गुर्जर उत्तर भारत, पाकिस्तान, कश्मीर, हिमाचल और अफगानिस्तान में बसे हैं। मध्यप्रदेश में भी लगभग अधिकांश इलाकों मे गुर्जर बसे हैं पर चंबल-मुरैना में इनकी बहुलता है। इसके अलावा निमाड़ और मालवा के कुछ हिस्सों में इनकी खासी तादाद हैं। भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरांवाला जिला और रावलपिंडी जिले का गूजर खान शहर आज भी यहां गुर्जर रहते हैं। गुर्जर लोग पहले राजस्थान में जोधपुर के आस-पास निवास करते थे। इसी कारण लगभग छठी शदी के मध्य राजस्थान का अधिकांश भाग 'गुर्जरन्ना-भूमि' के नाम से जाना था।
मुगल काल में गुर्जरों ने आक्रांताओं से बहुत की जोरदार तरीके से लौहा लिया और लगभग 200 वर्षों तक भारत की भूमि को बचाए रखा। अरब लेखकों के अनुसार गुर्जर उनके सबसे भयंकर शत्रु थे। अगर गुर्जर नहीं होते तो वो भारत पर 12वीं सदी से पहले ही अरब का अधिकार हो जाता।
12वीं सदी के बाद गुर्जरों का पतन होना शुरू हुआ और ये कई शाखाओं में बंट गए। गुर्जर समुदाय से अलग हुई कई जातियां बाद में बहुत प्रभावशाली होकर राजपूत और ब्राह्मण में भी जा मिली। बची हुई शाखाएं गुर्जर कबीलों में बदल गईं और खेती और पशुपालन का काम करने लगी। कालांतर में लगातार हुए आक्रमण और अत्याचार के चलते गुर्जरों को कई स्थानों पर अपना धर्म बदलकर मुसलमान भी होना पड़ा। उत्तर प्रदेश, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में रहने वाले गुर्जरों की स्थिति थोड़ी अलग है, जहां हिंदू और मुसलमान दोनों ही गुर्जर देखे जा सकते हैं जबकि राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं। दूसरी ओर पंजाब में धर्म की रक्षार्थ कुछ गुर्जर सिख भी बने।
छठी सदी के बाद गुर्जरों ने अपनी सत्ता कायम की। 7वीं से 12वीं सदी में गुर्जर अपने चरम पर थे। गुजरात के भीमपाल और उसके वंशज भी गुर्जर ही थे, जिन्होंने अरब आक्रमणकारियों को लगभग 200 साल तक भारतीय सीमा से खदेड़ा। भीनमाल गुर्जर सम्राज्य की राजधानी थी। भरुच का सम्राज्य भी गुर्जरों के अधीन था। गुर्जर-प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी। मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बंगाल के पाल वंश और दक्षिण-भारत के राष्ट्रकूट शासकों से होती रहती थी।
नवीं शती से लेकर दसवीं शतीं के अंत तक लगभग 200 वर्षों तक मथुरा प्रदेश गुर्जर प्रतीहार-शासन में रहा। इस वंश में मिहिरभोज, महेंन्द्रपाल तथा महीपाल बड़े प्रतापी शासक हुए। उनके समय में लगभग पूरा उत्तर भारत एक ही शासन के अंतर्गत हो गया था। अधिकतर प्रतीहारी शासक वैष्णव या शैव मत को मानते थे। उस समय के लेखों में इन राजाओं को विष्णु, शिव तथा भगवती का भक्त बताया गया है।
संदर्भ :
1.वी.ए. स्मिथ, “दी गुर्जर्स ऑफ़ राजपूताना एंड कन्नौज”, जर्नल ऑफ़ दी रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड।