क्या अमरनाथ गुफा मुस्लिम गडरिये ने खोजी थी? हकीकत या दुष्प्रचार...
भारत में धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरासंपदाओं को नष्ट करने का एक लंबा दौर अंग्रेजों के काल में खत्म हुआ तब भारतीय धार्मिक और राजनीतिक इतिहास को विकृत करने का षड़यंत्र का भी एक लंबा दौर चला। इसी के चलते भारतीयों में बहुत भ्रम की स्थिति पैदा हो गई। यह सभी षड़यंत्र विभाजन की कूटनीति का एक अंग थे। यह कूटनीति आज भी जारी है। इसी कूटनीति का शिकार कई पढ़े लिखे लोग भी हो जाते हैं तो फिर अनपढ़ का तो सवाल ही नहीं उठता। दरअसल, भारत का प्रत्येक व्यक्ति जो किसी भी धर्म का हो वह इतिहास को अच्छे से पढ़ने के बाद उस पर कोई टिप्पणी नहीं करता है। हालांकि ट्वीटर और फेसबुक के जमाने में उससे ऐसी आशा भी नहीं की जा सकती है।
अभी कुछ ही समय पहले अभिनेत्री दिया मिर्जा के एक साल पुराने अमरनाथ गुफा के बारे में किए गए ट्वीट को एक बड़े टीवी चैनल के एंकर ने रीट्वीट करते हुए लिखा कि यह गलत जानकारी है। दिया ने करीब एक साल पहले पिछली 11 जुलाई को अमरनाथ मंदिर से जुड़ा एक ट्वीट किया था। उन्होंने ट्वीट में लिखा था, "अमरनाथ की खोज एक मुस्लिम गड़रिए बूटा मलिक ने 1850 में की थी। यह एक साझे समाज, सम्मान और प्यार का प्रतीक है। #MyIndia."...दिया मिर्जा जैसी अधूरी जानकारी कई स्व-घोषित इतिहाकार और दुष्प्रचारक भी रखते हैं। इसमें दिया मिर्जा का कोई दोष नहीं। दिया के पास इतना समय नहीं है कि वह इतिहास की गहराई में जाए। दुष्प्रचार का मकसद हिंदुओं के घाटी से कई सहस्राब्दी पुराने जुड़ाव को नकारकर अमरनाथ यात्रा को रोकना हो सकता है।
हालांकि 1850 में अमरनाथ गुफा की खोज करने वाले इस तथाकथित गडरिये बूटा मलिक का जिक्र 19वीं शताब्दी के किसी भी ऐतिहासिक दस्तावेज में नहीं मिलता है। 20वीं शताब्दी में यह प्रचारित होने लगा कि अमरनाथ गुफा की खोज एक मुस्लिम गडरिये ने की थी। धर्मनिरपेक्षतावादियों ने इस दुष्प्रचार को हाथोंहाथ लिया और इस सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल के रूप में पेश किया जाने लगा। हालांकि इस कथित गडरिये के नाम और खोज की तारीख कई जगह अलग-अलग दी गई हैं। उसका नाम अदम मलिक, अकरम मलिक से लेकर बूटा मलिक तक है। यही नहीं उसके अमरनाथ गुफा खोजने का कालखंड 16वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक बताया गया है। कुछ लोग कहते हैं कि ये कहानी स्थानीय गडरियों ने फैलाई होगी, ताकि उन्हें यहां चढ़ाए जाने वाले दान में हिस्सा मिल सके और वे अपने इस मकसद में सफल भी हो गए।
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1850 से पहले 1842 में एक ब्रिटिश यात्री जीटी विग्ने जब अमरनाथ की यात्रा पर थे तब उन्होंने वहां कुछ हिन्दू तीर्थयात्रियों को भी देखा था जिसका जिक्र उन्होंने अपनी एक किताब में किया। इससे पहले 17वीं शताब्दी में कश्मीर के मुगल प्रशासक अली मरदान खान के बारे में कहा जाता है कि उसने हिंदू अमरनाथ यात्रियों का मजाक उड़ाया था, जो बारिश और बर्फबारी के बावजूद एक गुफा में किसी चीज के दर्शन करने के लिए जाते थे। इससे पहले औरंगजेब के साथ 1663 में कश्मीर की यात्रा करने वाले एक फ्रांसीसी यात्री फ्रैंकोइस बरनियर ने एक बर्फ से जमी गुफा का जिक्र किया है। यह संभव है कि बरनियर अमरनाथ गुफा का ही जिक्र कर रहे थे, जैसा कि इतिहासकार विनसेंट आर्थर स्मिथ द्वारा उल्लेख किया गया है। उन्होंने बरनियर की किताब का अंग्रेजी में अनुवाद किया है।
स्वामी विवेकानंद ने 1898 में 8 अगस्त को अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी और बाद में उन्होंने उल्लेख किया कि मैंने सोचा कि बर्फ का शिवलिंग स्वयं शिव हैं। मैंने ऐसी सुन्दर, इतनी प्रेरणादायक कोई चीज नहीं देखी और न ही किसी धार्मिक स्थल का इतना आनंद लिया है।
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प्राचीन और मध्यकाल में गुफा का उल्लेख :
अमरनाथ यात्रा वर्णन मध्यकाल की कई रचनाओं में मिलता है। कश्मीर के इतिहास पर मध्यकाल की एक ऐतिहासिक कृति इसका प्रमाण प्रसिद्ध कश्मीरी इतिहासकार कल्हाण ने अपनी 12वीं शताब्दी में लिखे वृतांत राजतरंगिणी में भी किया है। वह लिखते हैं कि कश्मीर की महारानी सूर्यमती ने अमरेश्वर में मठों को निर्माण करवाया (राजतरंगिणी 7.183)(3)। राजतरंगिणी (1.267) में यह स्पष्ट हो जाता है कि अमरेश्वर के लिए तीर्थाटन 12वीं शताब्दी में भी जारी था। 15वीं शताब्दी में जौनराजा द्वारा लिखी गई राजतरंगिणी में अमरेश्वर को कश्मीर का भगवान और अधिपति बताया गया है।
ईसा पूर्व लिखी गई कल्हण की 'राजतरंगिनी तरंग द्वितीय' में उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत (34 ईपू-17वीं ईस्वीं) शिव के भक्त थे और वे पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा करने जाते थे। बर्फ का शिवलिंग कश्मीर को छोड़कर विश्व में कहीं भी नहीं मिलता। इस उल्लेख से पता चलता है कि यह तीर्थ कितना पुराना है। पहले के तीर्थ में साधु-संत और कुछ विशिष्ट लोगों के अलावा घरबार छोड़कर तीर्थयात्रा पर निकले लोग ही जा पाते थे, क्योंकि यात्रा का कोई सुगम साधन नहीं था इसलिए कुछ ही लोग दुर्गम स्थानों की तीर्थयात्रा कर पाते थे।
बृंगेश संहिता, नीलमत पुराण, कल्हण की राजतरंगिनी आदि में अमरनाथ तीर्थ का बराबर उल्लेख मिलता है। बृंगेश संहिता में कुछ महत्वपूर्ण स्थानों का उल्लेख है, जहां तीर्थयात्रियों को अमरनाथ गुफा की ओर जाते समय धार्मिक अनुष्ठान करने पड़ते थे। उनमें अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी (2,811 मीटर), सुशरामनगर (शेषनाग, 3454 मीटर), पंचतरंगिनी (पंचतरणी, 3,845 मीटर) और अमरावती शामिल हैं।
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अमरनाथ गुफा हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है। इसके बारे में बहुत भ्रम फैलाया जाता है। आजकल बाबा अमरनाथ को 'बर्फानी बाबा' कहकर प्रचारित करने का चलन भी चल रहा है। असल में प्राचीनकाल में इसे 'अमरेश्वर' कहा जाता था। यह बहुत ही गलत धारणा फैलाई गई है कि इस गुफा को पहली बार किसी मुस्लिम ने 18वीं-19वीं शताब्दी में खोज निकाला था। वह गुज्जर समाज का एक गडरिया था, जिसे बूटा मलिक कहा जाता है। क्या गडरिया इतनी ऊंचाई पर, जहां ऑक्सीजन नहीं के बराबर रहती है, वहां अपनी बकरियों को चराने ले गया था? स्थानीय इतिहासकार मानते हैं कि 1869 के ग्रीष्मकाल में गुफा की फिर से खोज की गई और पवित्र गुफा की पहली औपचारिक तीर्थयात्रा 3 साल बाद 1872 में आयोजित की गई थी। इस तीर्थयात्रा में मलिक भी साथ थे।
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300 वर्ष तक नहीं होने दी यात्रा?
एक अंग्रेज लेखक लारेंस अपनी पुस्तक 'वैली ऑफ कश्मीर' में लिखते हैं कि पहले मट्टन के कश्मीरी ब्राह्मण अमरनाथ के तीर्थयात्रियों की यात्रा करवाते थे। बाद में बटकुट में मलिकों ने यह जिम्मेदारी संभाल ली, क्योंकि मार्ग को बनाए रखना और गाइड के रूप में कार्य करना उनकी जिम्मेदारी थी। वे ही बीमारों, वृद्धों की सहायता करते और उन्हें अमरनाथ के दर्शन कराते थे इसलिए मलिकों ने यात्रा कराने की जिम्मेदारी संभाल ली। इन्हें मौसम की जानकारी भी होती थी। आज भी चौथाई चढ़ावा इस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है।
दरअसल, मध्यकाल में कश्मीर घाटी पर विदेशी ईरानी और तुर्क आक्रमणों के चलते वहां अशांति और भय का वातावरण फैल गया जिसके चलते वहां से हिन्दुओं ने पलायन कर दिया। पहलगांव को विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने सबसे पहले इसलिए निशाना बनाया, क्योंकि इस गांव की ऐतिहासिकता और इसकी प्रसिद्धि इसराइल तक थी। यहीं पर सर्वप्रथम यहूदियों का एक कबीला आकर बस गया था। > इस हिल स्टेशन पर हिन्दू और बौद्धों के कई मठ थे, जहां लोग ध्यान करते थे। ऐसा एक शोध हुआ है कि इसी पहलगांव में ही मूसा और ईसा ने अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए थे। बाद में उनको श्रीनगर के पास रौजाबल में दफना दिया गया। पहलगांव का अर्थ होता है गड़रिए का गांव।> ऐसे में जब आक्रमण हुआ तो 14वीं शताब्दी के मध्य से लगभग 300 वर्ष की अवधि के लिए अमरनाथ यात्रा बाधित रही। कश्मीर के शासकों में से एक था 'जैनुलबुद्दीन' (1420-70 ईस्वी), उसने अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी। फिर 18वीं सदी में फिर से शुरू की गई। वर्ष 1991 से 95 के दौरान आतंकी हमलों की आशंका के चलते इसे इस यात्रा को स्थगित कर दिया गया था।
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अमरनाथ गुफा का पौराणिक उल्लेख
पौराणिक मान्यता है कि एक बार कश्मीर की घाटी जलमग्न हो गई। उसने एक बड़ी झील का रूप ले लिया। जगत के प्राणियों की रक्षा के उद्देश्य से ऋषि कश्यप ने इस जल को अनेक नदियों और छोटे-छोटे जलस्रोतों के द्वारा बहा दिया। उसी समय भृगु ऋषि पवित्र हिमालय पर्वत की यात्रा के दौरान वहां से गुजरे। तब जल स्तर कम होने पर हिमालय की पर्वत श्रृखंलाओं में सबसे पहले भृगु ऋषि ने अमरनाथ की पवित्र गुफा और बर्फ के शिवलिंग को देखा। मान्यता है कि तब से ही यह स्थान शिव आराधना का प्रमुख देवस्थान बन गया और अनगिनत तीर्थयात्री शिव के अद्भुत स्वरूप के दर्शन के लिए इस दुर्गम यात्रा की सभी कष्ट और पीड़ाओं को सहन कर लेते हैं। यहां आकर वह शाश्वत और अनंत अध्यात्मिक सुख को पाते हैं।
नीलमत पुराण के अनुसार काशी में दर्शन से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य से हजार गुना पुण्य देने वाले श्री बाबा अमरनाथ के दर्शन हैं। और कैलाश को जो जाता है, वह मोक्ष पाता है। पुराण कब लिखे गए? पुराण महाभारतकाल लिखे गए और बौद्धकाल में इनका फिर से लेखन हुआ।
कितनी प्राचीन है यह गुफा?
जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से करीब 141 किलोमीटर दूर 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा को पुरातत्व विभाग वाले 5 हजार वर्ष पुराना मानते हैं अर्थात महाभारत काल में यह गुफा थी। लेकिन उनका यह आकलन गलत हो सकता है, क्योंकि सवाल यह उठता है कि जब 5 हजार वर्ष पूर्व गुफा थी तो उसके पूर्व क्या गुफा नहीं थी? हिमालय के प्राचीन पहाड़ों को लाखों वर्ष पुराना माना जाता है। उनमें कोई गुफा बनाई गई होगी तो वह हिमयुग के दौरान ही बनाई गई होगी अर्थात आज से 12 से 13 हजार वर्ष पूर्व।
अमरनाथ गुफा की कथा : शिव के 5 प्रमुख स्थान हैं- 1. कैलाश पर्वत, 2. अमरनाथ, 3. केदारनाथ, 4. काशी और 5. पशुपतिनाथ। अमरनाथ की पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने भगवती पार्वती को मोक्ष का मार्ग दिखाया था। इस तत्वज्ञान को 'अमरकथा' के नाम से जाना जाता है इसीलिए इस स्थान का नाम 'अमरनाथ' पड़ा। यह कथा भगवती पार्वती तथा भगवान शंकर के बीच हुआ संवाद है। यह उसी तरह है जिस तरह कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद हुआ था। अमरकथा सुनाते वक्त कोई अन्य जीव इस कथा को न सुने इसीलिए भगवान शंकर 5 तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्रि) का परित्याग करके इन पर्वतमालाओं में पहुंच गए और अमरनाथ गुफा में भगवती पार्वतीजी को अमरकथा सुनाने लगे।
इसी गुफा में भगवान शिव ने कई वर्ष रहकर यहां तपस्या की थी। शास्त्रों के अनुसार इसी गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। माता पार्वती के साथ ही इस रहस्य को शुक (तोता) और दो कबूतरों ने भी सुन लिया था। यह शुक बाद में शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गए, जबकि गुफा में आज भी कई श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता है जिन्हें अमर पक्षी माना जाता है। भगवान शिव जब पार्वती को अमरकथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनवाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये सभी स्थान अभी भी अमरनाथ यात्रा के दौरान रास्ते में दिखाई देते हैं। जय बाबा अमरनाथ।