अवैदिक धर्मों में जैन धर्म सबसे प्राचीन है, प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव माने जाते हैं। जैन धर्म में की प्रचलित अनुश्रुति के अनुसार, नाभिराय के पुत्र भगवान ऋषभदेव के आदेश से इन्द्र ने 52 देशों की रचना की थी। शूरसेन देश और उसकी राजधानी मथुरा भी उन देशों में थी (जिनसेनाचार्य कृत महापुराण- पर्व 16,श्लोक 155)। जैन 'हरिवंश पुराण' में प्राचीन भारत में 18 महाराज्य थे। पालि साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ 'अंगुत्तरनिकाय' में भगवान बुद्ध से पहिले 16 महाजनपदों का नामोल्लेख मिलता है। यह तो मुख्य जनपद है लेकिन इनके अंतर्गत कई छोटे छोटे उपजनपद भी हुआ करते थे। जैसे कंबोज के पास उपर कैकयी, कुरु के पास उपर दरद आदि।
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ये सभी महाजनपद आज के उत्तरी अफगानिस्तान से बिहार तक और हिन्दूकुश से गोदावरी नदी तक में फैला हुआ था। कावेरी नदी के उस पर दृविड़ राजाओं का शासन था। उनके शासन को भी मिला लिया जाए तो हरिवंश पुराण अनुसार कुल 18 महाराज्य होते हैं। हालांकि सबसे ज्यादा उथल-पुथल उत्तर भारत में ही रही।
जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनी की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पश्चिमम में गांधार प्रदेश (अफगानिस्तान) से लेकर पूर्व में असम-अरुणाचल तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था। कौटिल्य ने एक चक्रवर्ती सम्राट के अन्तर्गत संपूर्ण देश की राजनीतिक एकता की परिकल्पना की थी। ईसापूर्व छठी सदी से ईसापूर्व दूसरी सदी तक प्रचलन में रहे आहत सिक्कों के वितरण से अंदेशा होता है कि ईसापूर्व चौथी सदी तक सम्पूर्ण भारत में एक ही मुद्रा प्रचलित थी। इससे उस युग में भारत के एकीकरण की साफ झलक दिखती है।
मुख्यत: 1300 ईसा पूर्व भारत 16 महाजनपदों में बंटा गया- 1.कुरु, 2.पंचाल, 3.शूरसेन, 4.वत्स, 5.कोशल, 6.मल्ल, 7.काशी, 8.अंग, 9.मगध, 10.वृज्जि, 11.चेदि, 12.मत्स्य, 13.अश्मक, 14.अवंति, 15.गांधार और 16.कंबोज। अधिकांशतः महाजनपदों पर राजा का ही शासन रहता था, परंतु गण और संघ नाम से प्रसिद्ध राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह का हर व्यक्ति राजा कहलाता था।
महाभारत के बाद धीरे-धीरे धर्म का केंद्र तक्षशिला (पेशावर) से हटकर मगध के पाटलीपुत्र में आ गया। गर्ग संहिता में महाभारत के बाद के इतिहास का उल्लेख मिलता है। अरब और तुर्क के मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा तक्षशिला और पाटलीपुत्र का संहार किए जाने के कारण महाभारत से बुद्धकाल तक के इतिहास का अस्पष्ट उल्लेख मिलता है। बाद में अंग्रेजों ने इस काल के सभी सबूतों को मिटाने का कार्य किया।
यह काल बुद्ध के पूर्व का काल है, जब भारत 16 जनपदों में बंटा हुआ था। हर काल में उक्त जनपदों की राजधानी भी अलग-अलग रही, जैसे कोशल राज्य की राजधानी अयोध्या थी तो बाद में साकेत और उसके बाद बौद्ध काल में श्रावस्ती बन गई। हालांकि बौद्धकाल में भी ये 16 जनपद थे लेकिन उनके उस काल में नाम अलग हो गए।
महाभारत युद्ध के पश्चात पंचाल पर पाण्डवों के वंशज तथा बाद में नाग राजाओं का अधिकार रहा। पुराणों में महाभारत युद्ध से लेकर नंदवंश के राजाओं तक 27 राजाओं का उल्लेख मिलता है।
महाभारत काल के बाद अर्थात कृष्ण के बाद हजरत इब्राहीम का काल ईस्वी पूर्व 1800 है अर्थात आज से 3813 वर्ष पूर्व का अर्थात कृष्ण के 1400 वर्ष बाद ह. इब्राहीम का जन्म हुआ था। यह उपनिषदों का काल था। ईसा से 1000 वर्ष पूर्व लिपिबद्ध किए गए छांदोग्य उपनिषद में महाभारत युद्ध के होने का जिक्र है।
हजरत इब्राहीम के काल में वेद व्यास के कुल के महान संत 'सुतजी' थे। इस काल में वेद, उपनिषद, महाभारत और पुराणों को फिर से लिखा जा रहा था। सुतजी और इब्राहीम का काल थोड़ा-बहुत ही आगे-पीछे रहा होगा।
इस काल में उत्तर वैदिक काल की सभ्यता का पतन होना शुरू हो गया था। इस काल में एक और जहां जैन धर्म के अनुयायियों और शासकों की संख्या बढ़ गई थी वहीं धरती पर यहूदियों के वंश विस्तार की कहानी लिखी जा रही थी। हजरत इब्राहीम इस काल में इराक का क्षेत्र छोड़कर सीरिया के रास्ते इसराइल चले गए थे और फिर वहीं पर उन्होंने अपने वंश और यहूदी धर्म का विस्तार किया।
इस काल में भरत, कुरु, द्रुहु, त्रित्सु और तुर्वस जैसे राजवंश राजनीति के पटल से गायब हो रहे थे और काशी, कोशल, वज्जि, विदेह, मगध और अंग जैसे राज्यों का उदय हो रहा था। इस काल में आर्यों का मुख्य केंद्र 'मध्यप्रदेश' था जिसका प्रसार लुप्त सरस्वती से लेकर गंगा के दोआब तक था। यही पर कुरु एवं पांचाल जैसे विशाल राज्य भी थे। पुरु और भरत कबीला मिलकर 'कुरु' तथा 'तुर्वश' और 'क्रिवि' कबीला मिलकर 'पंचाल' (पांचाल) कहलाए।
अंतिम राजा निचक्षु : महाभारत के बाद कुरु वंश का अंतिम राजा निचक्षु था। पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो परीक्षित का वंशज (युधिष्ठिर से 7वीं पीढ़ी में) था, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी को बनाया। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी का राजा उदयन था। निचक्षु और कुरुओं के कुरुक्षेत्र से निकलने का उल्लेख शांख्यान श्रौतसूत्र में भी है।
जन्मेजय के बाद क्रमश: शतानीक, अश्वमेधदत्त, धिसीमकृष्ण, निचक्षु, उष्ण, चित्ररथ, शुचिद्रथ, वृष्णिमत सुषेण, नुनीथ, रुच, नृचक्षुस्, सुखीबल, परिप्लव, सुनय, मेधाविन, नृपंजय, ध्रुव, मधु, तिग्म्ज्योती, बृहद्रथ और वसुदान राजा हुए जिनकी राजधानी पहले हस्तिनापुर थी तथा बाद में समय अनुसार बदलती रही। बुद्धकाल में शत्निक और उदयन हुए। उदयन के बाद अहेनर, निरमित्र (खान्दपनी) और क्षेमक हुए।
मगध वंश में क्रमश: क्षेमधर्म (639-603 ईपू), क्षेमजित (603-579 ईपू), बिम्बिसार (579-551), अजातशत्रु (551-524), दर्शक (524-500), उदायि (500-467), शिशुनाग (467-444) और काकवर्ण (444-424 ईपू) ये राजा हुए।
नंद वंश में नंद वंश उग्रसेन (424-404), पण्डुक (404-294), पण्डुगति (394-384), भूतपाल (384- 372), राष्ट्रपाल (372-360), देवानंद (360-348), यज्ञभंग (348-342), मौर्यानंद (342-336), महानंद (336-324)। इससे पूर्व ब्रहाद्रथ का वंश मगध पर स्थापित था।
अयोध्या कुल के मनु की 94 पीढ़ी में बृहद्रथ राजा हुए। उनके वंश के राजा क्रमश: सोमाधि, श्रुतश्रव, अयुतायु, निरमित्र, सुकृत्त, बृहत्कर्मन्, सेनाजित, विभु, शुचि, क्षेम, सुव्रत, निवृति, त्रिनेत्र, महासेन, सुमति, अचल, सुनेत्र, सत्यजित, वीरजित और अरिञ्जय हुए। इन्होंने मगध पर क्षेमधर्म (639-603 ईपू) से पूर्व राज किया था।
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भारत के सोलह महाजनपदों का उल्लेख ईसा पूर्व छठी शताब्दी से भी पहले का है। ये महाजनपद थे-
* गांधार : पाकिस्तान स्थित पश्चिमोत्तर क्षेत्र; राजधानी तक्षशिला। * कंबोज : आधुनिक अफगानिस्तान; राजधानी राजापुर। * कुरु : महाभारत काल के पूर्व दक्षिण कुरुओं का राज्य हिन्दुकुश के आगे से कश्मीर तक था। बाद में पांचालों पर आक्रमण करके उन्होंने अपना क्षेत्र विस्तार किया। महाभारत काल में कुरुओं का क्षेत्र था मेरठ और थानेश्वर के आसपास था क्षेत्र और राजधानी थी पहले हस्तिनापुर और बाद में इन्द्रप्रस्थ। बौद्ध कल में यह संपूर्ण क्षेत्र कुषाणों के अधीन हो चला था। * पांचाल : बरेली, बदायूं और फर्रूखाबाद; राजधानी अहिच्छत्र तथा काम्पिल्य। * कोशल : अवध; राजधानी साकेत और श्रावस्ती। * शूरसेन : मथुरा के आसपास का क्षेत्र; राजधानी मथुरा। * काशी : वाराणसी; राजधानी वाराणसी। * मगध : दक्षिण बिहार, राजधानी गिरिव्रज (आधुनिक राजगृह)। * वत्स : इलाहाबाद और उसके आसपास; राजधानी कौशांबी। * अंग : भागलपुर; राजधानी चंपा। * मत्स्य : जयपुर; राजधानी विराट नगर। * वज्जि : जिला दरभंगा और मुजफ्फरपुर; राजधानी मिथिला, जनकपुरी और वैशाली। * मल्ल : ज़िला देवरिया; राजधानी कुशीनगर और पावा (आधुनिक पडरौना) * चेदि : बुंदेलखंड; राजधानी शुक्तिमती (वर्तमान बांदा के पास)। * अवंति : मालवा; राजधानी उज्जयिनी। * अश्मक : गोदावरी घाटी; राजधानी पांडन्य।