क्या है पाटलिपुत्र का इतिहास, 10 बातें जानी-अनजानी

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022 (18:18 IST)
History of Pataliputra City: भारत के सबसे शक्ति शाली जनपद या राज्य मगथ की राजधानी पाटलिपुत्र का इतिहास बहुत ही रोचक, युद्धक और षड़यंत्रों की गाथाओं से भरा हुआ है। यह मगथ की राजधानी थी। यूनानी राजदूत मेगस्थनीज़ ने अपनी किताब इंडिका और वात्स्यायन ने अपने ग्रन्थ कामसूत्र में इन नगर के इतिहास पर लिखा है। वैदिक संस्कृत ग्रंथ भाड़ और उभय ‍अभिसारिकार में भी इसका सुंदर चित्रण मिलता है।
 
1. कुसुमपुर : पाटलीपुत्र का एक नाम कुसुमपुर भी है। इसे वर्तमान में पटना कहते हैं। यह प्राचीन काल का एक विशालकाय नगर हुआ करता था जहां देश और दुनिया से लोग आते थे और यहां का बाजार दुनियाभर में प्रसिद्ध था। कुसुमपुर या पाटलीपुत्र के इहिहास को मगथ के इतिहास से अगल करके नहीं देखा जा सकता।
 
2. मगथ की सत्ता का केंद्र : पाटलीपुत्र मगथ साम्राज्य की सत्ता का केंद्र था। यहां पर विशालकाय इमारतें हुआ करती थीं और यहां की महिला एवं पुरुष सुंदर एवं कीमती आभूषणों से लदे होते थे। यहां राजतंत्र के साथ लोकतांत्रित शासन भी रहा है।
 
3. कई प्रसिद्ध सम्राटों की राजधानी : पाटलीपुत्र पर जहां महाभारत काल के जरासंध का अधिकार था वहीं विक्रमादित्य से लेकर सम्राट अशोक और चंद्रगुप्त द्वितीय एवं हर्षवर्धन तक के महान शासक रहे हैं। माना जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद जन्मेजय के बाद 17 राजाओं ने राज किया। कुछ इतिहाकार अनुसार जन्मेजय की 29वीं पीढ़ी में राजा उदयन हुए।
 
4. भारत की सत्ता का केंद्र : प्राचीनकाल में गांधार के पुरुषपुर (पेशावर) के पास तक्षशिला तो मगध साम्राज्य में पाटलीपुत्र एक समृद्ध नगर था। महाभारत काल के बाद धीरे-धीरे धर्म एवं राजनीति का केंद्र तक्षशिला (पेशावर) से हटकर मगध के पाटलीपुत्र में आ गया। गर्ग संहिता में महाभारत के बाद के इतिहास का उल्लेख मिलता है।
 
5. कुश के बाद जरासंध का राज : कुश की परंपरा के राज्यों के बाद मगध (पाटलीपुत्र) पर वृहद्रथ के वीर पराक्रमी पुत्र और कृष्ण के दुश्मनों में से एक जरासंध का शासन हुआ, जिसके संबंध यवनों से घनिष्ठ थे। जरासंध के इतिहास के अंतिम शासक निपुंजय की हत्या उनके मंत्री सुनिक ने की और उसका पुत्र प्रद्योत मगध के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। प्रद्योत वंश के 5 शासकों के अंत के 138 वर्ष पश्चात ईसा से 642 वर्ष पूर्व शिशुनाग मगध के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ। 
 
6. महापद्म वंश का राज : जरासंध के वंश के बाद महापद्म ने मगध की बागडोर संभाली और अपने वंश की स्थापना की। महापद्म, जिन्हें महापद्मपति या उग्रसेन भी कहा जाता है, समाज के शूद्र वर्ग के थे। महापद्म ने अपने पूर्ववर्ती शिशुनाग राजाओं से मगध की बागडोर और सुव्यवस्थित विस्तार की नीति भी जानी। पुराणों में उन्हें सभी क्षत्रियों का संहारक बतलाया गया है। महापद्म ने उत्तरी, पूर्वी और मध्यभारत स्थित इक्ष्वाकु, पांचाल, काशी, हैहय, कलिंग, अश्मक, कौरव, मैथिल, शूरसेन और वितिहोत्र जैसे शासकों को हराया। पा‍टलीपुत्र के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुए नंद वंश के प्रथम शासक महापद्म नंद ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की और मगध साम्राज्य के अंतिम नंद धनानंद ने उत्तराधिकारी के रूप में सत्ता संभाली। 
 
7. बिम्बिसार : मगथ के राजनीतिक उत्थान की शुरुआत ईसा पूर्व 528 से शुरू हुई, जब बिम्बिसार ने सत्ता संभाली। बिम्बिसार के बाद अजातशत्रु ने बिम्बिसार के कार्यों को आगे बढ़ाया। गौतम बुद्ध के समय में मगध में बिंबिसार और तत्पश्चात उसके पुत्र अजातशत्रु का राज था। अजातशत्रु ने विज्यों (वृज्जिसंघ) से युद्ध कर पाटलीग्राम में एक दुर्ग बनाया। बाद में अजातशत्रु के पुत्र उदयन ने गंगा और शोन के तट पर मगध की नई राजधानी पाटलीपुत्र नामक नगर की स्थापना की। 
 
8. मोर्यवंश का राज : अंतिम धनानंद या घनानंद के शासन को उखाड़ फेंकने के लिए चाणक्य ने शपथ ली थी। चाणक्य ने इसके साम्राज्य को उखाड़कर चंद्रगुप्त मार्य का राज तिलक किया। सम्राट अशोक तक यह वंश बढ़ता गया।
 
9. कालक्रम : महानंद के पुत्र महापद्म ने नंद-वंश की नींव डाली। इसके बाद सुमाल्य आदि आठ नंदों ने शासन किया। महानंद के बाद नवनंदों ने राज्य किया। घनानंद नंदवंश का अंतिम राजा था। इसके बाद मार्यवंश का शासन चला। 
10. तारीखों में इतिहास : कुछ इतिहासकारों के अनुसार अर्जुन के समकालीन जरासंध के पुत्र सहदेव से लेकर शिशुनाग वंश से पहले के जरासंध वंश के 22 राजा मगध के सिंहासन पर बैठ चुके हैं। उनके बाद 12 शिशुनाग वंश के बैठे जिनमें छठे और सातवें राजाओं के समकालीन उदयन थे। महाभारत युद्ध के पश्चात पंचाल पर पाण्डवों के वंशज तथा बाद में नाग राजाओं का अधिकार रहा। पुराणों में महाभारत युद्ध से लेकर नंदवंश के राजाओं तक 27 राजाओं का उल्लेख मिलता है।
 
जन्मेजय के बाद क्रमश: शतानीक, अश्वमेधदत्त, धिसीमकृष्ण, निचक्षु, उष्ण, चित्ररथ, शुचिद्रथ, वृष्णिमत सुषेण, नुनीथ, रुच, नृचक्षुस्, सुखीबल, परिप्लव, सुनय, मेधाविन, नृपंजय, ध्रुव, मधु, तिग्म्ज्योती, बृहद्रथ और वसुदान राजा हुए जिनकी राजधानी पहले हस्तिनापुर थी तथा बाद में समय अनुसार बदलती रही। बुद्धकाल में शत्निक और उदयन हुए। उदयन के बाद अहेनर, निरमित्र (खान्दपनी) और क्षेमक हुए। नंद वंश में नंद वंश उग्रसेन (424-404), पण्डुक (404-294), पण्डुगति (394-384), भूतपाल (384-372), राष्ट्रपाल (372-360), देवानंद (360-348), यज्ञभंग (348-342), मौर्यानंद (342-336), महानंद (336-324)। इससे पूर्व ब्रहाद्रथ का वंश मगध पर स्थापित था।
 
अयोध्या कुल के मनु की 94 पीढ़ी में बृहद्रथ राजा हुए। उनके वंश के राजा क्रमश: सोमाधि, श्रुतश्रव, अयुतायु, निरमित्र, सुकृत्त, बृहत्कर्मन्, सेनाजित, विभु, शुचि, क्षेम, सुव्रत, निवृति, त्रिनेत्र, महासेन, सुमति, अचल, सुनेत्र, सत्यजित, वीरजित और अरिञ्जय हुए। इन्होंने मगध पर क्षेमधर्म (639-603 ईपू) से पूर्व राज किया था।
 
मगध पर जब धनानंद का राज था जब उनसे चाणक्य के पिता चणक की हत्या कर दी थी। इससे क्षुब्ध होकर चाणक्य ने उसके शासन को उखाड़ फेंका और चंद्रगुप्त मौर्य को वहां का सम्राट बनाया। सिकंदर के काल में हुए चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्युकस को दो बार बंधक बनाकर छोड़ दिया था। चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस की पुत्री हेलन से विवाह किया था। चन्द्रगुप्त की एक भारतीय पत्नी दुर्धरा थी जिससे बिंदुसार का जन्म हुआ। इस दौरा में सत्ता के लिए खूब षड्यंत्र और खून खराब हुआ है।
 
चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र था। 16 महाजनपदों में बंटे भारत में उसका जनपद सबसे शक्तिशाली था। चन्द्रगुप्त ने अपने पुत्र बिंदुसार को गद्दी सौंप दी थीं। चंन्द्रगुप्त से पूर्व मगध पर क्रूर धनानंद का शासन था, जो बिम्बिसार और अजातशत्रु का वंशज था। बिंदुसार के बाद जब सम्राट अशोक ने सत्ता की बागडोर संभाली तो उसके लिए यह आसान नहीं था। उसे अपने ही भाइयों से युद्ध लड़ना पड़ा और उनकी हत्या के बाद ही वह सत्ता के शीर्ष पर पहुंचा। 
 
अशोक महान के समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बंगाल से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान तक था। बस वह कलिंग के राजा को अपने अधिन नहीं कर पाया था। कलिंग युद्ध के बाद अशोक महान गौतम बुद्ध की शरण में चले गए थे। महात्मा बुद्ध की स्मृति में उन्होंने एक स्तम्भ खड़ा कर दिया, जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थल लुम्बिनी में मायादेवी मंदिर के पास अशोक स्तम्भ के रूप में देखा जा सकता है।
 
जब भारत के मगथ में नौवां बौद्ध शासक वृहद्रथ राज कर रहा था, तब ग्रीक राजा मीनेंडर अपने सहयोगी डेमेट्रियस (दिमित्र) के साथ युद्ध करता हुआ सिंधु नदी के पास तक पहुंच चुका था। सिंधु के पार उसने भारत पर आक्रमण करने की योजना बनाई। इस मीनेंडर या मिनिंदर को बौद्ध साहित्य में मिलिंद कहा जाता है। बौद्ध शासक वृहद्रथ जब कमजोर हुआ तो उसकी जगह सम्राट पुष्यमित्र शुंग (लगभग 185 ई. पू.) ने उससे सत्ता को छीनकर भारत से युनानियों को खदेड़कर पुन: राज्य को शक्तिशाली बनाया। इतिहासकारों अनुसार पुष्यमित्र का शासनकाल चुनौतियों से भरा हुआ था। उस समय भारत पर कई विदेशी आक्रांताओं ने आक्रमण किए, जिनका सामना पुष्यमित्र शुंग को करना पड़ा।
 
उपरोक्त सभी के पतन के बाद उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने संपूर्ण भारतवर्ष पर अपना शासन स्थापित कर दिया था। नाबोवाहन के पुत्र राजा गंधर्वसेन भी चक्रवर्ती सम्राट थे। गंधर्वसेन के पुत्र विक्रमादित्य और भर्तृहरी थे।
 
विक्रमादित्य के शासन के बाद शक और कुषाणों का आक्रमण प्रारंभ होने लगा था। फिर गुप्तवंश का शासन रहा। गुप्त वंश के सम्राटों में क्रमश: श्रीगुप्त, घटोत्कच, चंद्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, रामगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय, कुमारगुप्त प्रथम (महेंद्रादित्य) और स्कंदगुप्त हुए। स्कंदगुप्त के समय हूणों ने कंबोज और गांधार (उत्तर अफगानिस्तान) पर आक्रमण किया था। हूणों ने अंतत: भारत में प्रवेश करना शुरू किया।
 
मौर्य वंश के बाद भारत में कुषाण, शक और शुंग वंश के शासकों का भारत के बहुत बड़े भू- भाग पर राज रहा। इन वंशों में भी कई महान और प्रतापी राजा हुए। चन्द्रगुप्त मौर्य से विक्रमादित्य और फिर विक्रमादित्य से लेकर हर्षवर्धन और भोज राजाओं तक कई प्रतापी राजा हुए।

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